दुर्गा पूजा के बाद दिवाली की आगाज
जब मैं बच्चा था और दिवाली का समय दुर्गा पूजा के बाद ही आ जाता था। उस समय तारीख से नहीं कैलेंडर से नहीं दुर्गापूजा के पंद्रह दिन बाद दिवाली और छह दिन बाद छठ पूजा होता था। और ये अनुमान बिलकुल सटीक था। बचपन का अनुमान।
दुर्गा पूजा जब होता उसके बाद गांव घर में उस समय ज्यादातर लोग कच्चे मकान में रहते थे या सभी घर में लगभग कच्चे मिट्टी से लेप लगाने लायक जगह तो होता ही था।किसी का दिवाल कच्ची है तो किसी का आंगन तो किसी का द्वार या दरवाज़ा।जिसकी जितनी हैसियत वो उस हिसाब से घर द्वार रंग पुताई करवाता था।
सबसे मजेदार बात आज भी गजब का एहसास देती हैं कि हम उस समय तकरीबन आठ या दस वर्ष के होंगे। गांव से दूर एक तालाब हुआ करती थीं उसके बांध के पास जाके मिट्टी की खुदाई करके बोरा,झोला,daliya, बाल्टी, टोकरी वगैरह में भरकर घर के आगे लाकर जमा किया जाता था।मिट्टी पीला या लाल होता था।मिट्टी खोदना भरना सर पर उठाकर लाना।ये काम जोरो से लगभग सभी ग्रामीण घरों में होती थी। छोटे छोटे बच्चे लड़कियां औरत मर्द सभी मिल कर मिट्टी ढुलाई का काम करते थे।पूरा माहौल मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू से सराबोर हो जाता था।हंसी मजाक भी होती थीं। कई घरों के बच्चे लड़कियां एक साथ जाती थी।घर में निपाई पुताई साफ सफाई मुख्य रूप से घर की औरते करती थीं। पूरे घर की साफ सफाई होती थीं। कोई घर के आंगन तो कोई घर की दीवार तो कोई दरवाज़ा की निपाई पुताई कर रही है। साड़ी पहने हुई कमर में लपेटकर आंचल बंधे हुए सर पे भी आंचल। अपने काम में व्यस्त।ये नजारा ओर तैयारी देख कर दिवाली आने वाली है ऐसा महसूस हो जाता था।
ग्रामीण परिवेश
उस समय गांव में एक कुएं हुआ करती थीं जिसके पानी से खाना अच्छा टेस्टी बनती थी पूरा गांव की महिलाओं का झुंड उस कुएं पर सुबह से शाम तक जाना आना लगा रहता था।
तालाब में sanathi जिससे हुक्का पाती खेला जाता था उसे नदी से निकालकर उसके छाल को छुड़ाया जाता था नीचे उजला हल्का sanathi दिखती थीं जिसे बांधकर बाजार में ले जाकर बेचा जाता था। दिवाली के लिए मिट्टी की दिया बनाते कुम्हार की चक्की। घरौंदा या घरकुंडा बनाते बच्चे।
दीपक ,तेल,पटाखा खरीदकर लाते घर के पुरुष। ये नजारा देख कर दिवाली आ गया पता चल जाता था।
दिवाली के दिन की तैयारी
दिवाली आई सुबह से घर के सभी लोग अपने अपने काम में व्यस्त।शाम हुई मिट्टी की कूपी में बत्ती लगाके मिट्टी तेल भरती घर की बुजुर्ग महिला।पूजा पाठ की तैयारी करते पुरुष।घर को सजाते बच्चे लड़कियां औरत मर्द सभी।
घरकुंडा या घरौंदा में मिट्टी के बर्तन में लावा/ मुड़ी/खिलौना/रख कर दिया जलाने की पारंपरिक तरीका है।
उसके बाद इसी दिन लक्ष्मी गणेश जी की मूर्ति पूजा भी की जाती हैं।
दिवाली की शाम और रात की तैयारी
शाम हुई सभी छत पर एक दूसरे को देखते कौन पहले छत पर दिया जलाता है।फिर धीरे धीरे सभी छत पर दिए जगमगाने लगे। पटाखा छुटने लगे। नए नए कपड़े पहन कर दिवाली मनाते सभी लोग।
फिर थोड़ी रात हुए सभी हुक्का पाती खेलने के लिए एक दूसरे घर के लोगों से बोलते ।सभी मिलकर हुक्का पाती अपने अपने घर से निकालते हुए।एक जगह एकत्रित हुए एक दूसरे को बधाई दी।फिर सभी एक दूसरे के घर आना जाना शुरू आशीर्वाद लेने बड़े बुजुर्ग से। आशीर्वाद के रूप में मिठाई खिलौना जो चीनी का बना होता है उसे खाने का प्रचलन है। मुख्य रूप से।
फिर चावल दाल कचरी दहीबड़ा तरह तरह के पकवान खाते हैं सभी।
हम जाकर देखते है कि मेरे छत पर दीपक ज्यादा देर तक चले जले।
ऐसे होती हैं गांव की दिवाली।आप सभी को आने वाली दिवाली की हार्दिक बधाई।
Disclaimer - उपरोक्त ब्लॉग कंटेंट मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। रीति रिवाज तौर तरीके में अंतर हो सकता हैं। किसी भी लिखावट में हुई भूल के लिए क्षमा प्रार्थी हूं,,