मध्यम वर्ग की ज़िंदगी : दर्द कम, चिंता ज्यादा
🌞 सुबह की शुरुआत
सुबह के 10 बजे से पहले रोज़ की तरह मैं स्कूटी से ऑफिस जा रहा था।
धूप तेज थी, हेलमेट में पसीना बह रहा था।
लेकिन सबसे ज्यादा गर्मी मेरे दिमाग में थी—
👉 घर की जिम्मेदारी
👉 लोन का बोझ
👉 बच्चों की पढ़ाई
👉 आने वाले त्योहारों का खर्च
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है, जब गाड़ी आप चला रहे हों…
लेकिन दिमाग कहीं और दौड़ रहा हो?
---
🛵 गिरना और संभलना
आधा रास्ता तय हो चुका था।
सामने एक मोटरसाइकिल वाला बार-बार गाड़ी रोक रहा था।
शायद नया-नया सीखा था।
मैंने सोचा जल्दी निकल जाऊँ।
लेकिन रोड पर पड़े कंकड़ ने धोखा दे दिया।
टायर फिसला और मैं धीरे-धीरे सड़क पर गिर पड़ा।
हाथ, कलाई और घुटनों से खून बहने लगा।
दर्द तो था…
लेकिन उससे भी ज्यादा चुभा ये—
कि सामने वाला इंसान मुझे उठाने तक नहीं उतरा।
बस देखता रहा।
---
🩹 खून से ज्यादा चिंता पैसों की
मैं खुद उठा, गाड़ी संभाली और घर की ओर बढ़ गया।
खून बह रहा था, लेकिन रास्ते भर मन में एक ही सवाल गूंज रहा था—
“हे भगवान, अब ये खर्च कैसे पूरा होगा?”
👉 सैलरी अभी मिली नहीं।
👉 बच्चों की स्कूल फीस देनी है।
👉 लोन की किस्त भरनी है।
👉 त्योहार सामने हैं—कपड़े, मिठाई, घर का खर्च।
और अब ऊपर से नया खर्च—इलाज, दवाई, गाड़ी की मरम्मत।
---
🏠 घर लौटने के बाद
घर पहुँचा तो पत्नी से कहा—
“थोड़ा-बहुत चोट है, चिंता मत करो।”
फिर खुद ही फर्स्ट-एड किया, इंजेक्शन लिया, दवाई ली।
लेकिन दिमाग में जोड़-घटाव चलता रहा—
“कहाँ से लाऊँगा इतने पैसे?”
---
🤕 दर्द से ज्यादा जिम्मेदारी
रात को लेटा तो दर्द से कराह रहा था।
लेकिन फिर भी सोच रहा था—
अगर ऑफिस से छुट्टी ली तो सैलरी कट जाएगी।
फिर घर का खर्च कैसे चलेगा?
यही है मध्यम वर्ग की जिंदगी…
👉 जहाँ घाव से टपकते खून से ज्यादा चिंता जेब से टपकते पैसों की होती है।
👉 जहाँ जिम्मेदारियाँ इतनी बड़ी होती हैं कि दर्द भी छोटा लगने लगता है।
---
🙏 यही तो है जिंदगी
जिंदगी है तो संघर्ष है।
और संघर्ष है तो यही है मध्यम वर्ग की कहानी—
“दर्द छुपाकर भी हंसना, और टूटी हालत में भी घर का पहिया घुमाते रहना।”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें