चुकी आत्मा अमर है ये सिर्फ शरीर त्यागती है। ऋषि जरत्कlरु को कुछ दिनों से अपने पूर्वज़( पितृ) के डरावने सपने आ रहे थे। ऋषि ने सवाल किया कौन हो आप? जो मेरे सपने में आके मुझे डरा रहे हो। जवाब मिला, मै पूर्वज़ पितृ हूँ। तुम मुझे और अपने को बचाओ। जरत्कlरु ऋषि ने पूछा कैसे। पूर्वज़ बोले विवाह करके अपना वंश बढा कर। यदि आप ऐसा नहीं करते हो तो हम हमेशा पितृ लोक में फंसे रहेंगे। पूर्वज़ों की भूमि में उल्टे फंसे रहेंगे। और आप हमेशा के लिए पूत नामक नरक में फंसे रहोगे। वही ऋषि अगस्त्य को भी यही स्वप्न दिखा। जिसके बाद दोनों ऋषि ने विवाह कर बच्चे को जन्म दिया। ये पुराणो मे भी दोहराई गई है। नर संतान पुत्र मादा पुत्री कहा गया क्युकी उनके जन्म से ही उनके माता पिता पूत नामक नरक से मुक्त हुए। पूत वो जगह है जहाँ बच्चों को जन्म देने से इंकार करने वाले पुरुष और महिलाएं जाते हैं। पारंपरिक हिंदू मान्यता के अनुसार जीवित व्यक्ति अपने पूर्वज़ों अर्थात पितरों के प्रति (भास्कर रसरंग ११sep२२ देवदत्त पटनायक) प्रजनन के लिए बाध्यकारी है। यही पितृऋण कहलाता है। यह ऋण बच्चों को जन्म देकर( विवाह के बाद) मृतकों को भू लोक में पुनर्जन्म लेने के लिए सक्षम बनाकर चुकाया जाता हैं।। हिंदुओ द्वारा किये गए श्राद्ध के अनुष्ठान में पीसे हुई चावल के गोले दांत रहित पितरों को इस आश्वासन के साथ चढाये जाते हैं कि पितृ ऋण चुकाया जा सके। 
कुछ रोचक जानकारी--- हिंदू धर्म मान्यता के अनुसार आत्मा तीन नश्वर शरीर के भीतर विधमान है। पहला शरीर मांस और हड्डी से। दूसरा तंत्रिकाओ की ऊर्जा से जो मांस को जीव देती हैं। तीसरा शरीर आत्मा का स्वरूप है और ये अदृश्य हैं और इसमें कर्म के पुण्य,व ऋण जमा है। जबतक आत्मा पिछले जन्मो मे अपने कर्म से संचित ऋण और पुण्य से मुक्त नही होता तब तक आत्मा जीवितों की भूमि में लौटने और पिछले कर्मो के कारण निर्मित परिस्थिति का अनुभव करने के लिए बाध्य है। 🙏🙏🌷🌹