गुरुवार, 29 सितंबर 2022

परिस्थितियां और जीवन

 परिस्थितियां और जीवन

जीवन में जितनी भी परिस्थितियां आये उसे सहन करके पार करे या सामना करते हुए। क्युकी अगर ऐसे में आप की हिम्मत टूटी, आप हार माने तो परिस्थितियां भी और अगला इंसान भी आपको रौंदना शुरू कर देंगे। जीवन मे परिस्थितियां, चुनौतियाँ, समस्या आती हैं क्युकी संघर्ष ही जिंदगी है। तो ये हमे परखने आती हैं। हमे कुछ बनाना चाहती हैं। मतलब अपने उपर फेके गए कंकड़ से आप घर बनाओ। इस विपरित समय में आप डटे रहो, सामना करो, अपने अंदर सहंशाक्ति विकसित करते हुए सकारात्मक ऊर्जा के साथ।जब हम पूर्ण मूर्ति के रूप में तैयार हो जाते हैं तो आने वाले समय में लोग उनको ही अपना आइडल( आदर्श) मानते हैं। लेकिन जो पहले सह करजो पत्थर मूर्तिकार के ठुकाई, घिसाई, झेल लेता है वो मूर्ति के रूप में पूजा जाता हैं सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए जीवन के रास्ते में आगे बढ़ते हैं जरूर वो मंज़िल को प्राप्त कर ही लेते हैं। जीवन चक्र में सुख और दुःख जरूर आता है तो हमें सोचना होगा कि पहले सहन करना है या बाद में। पहले सहन करने पर बाद में पूजे जायेंगे। अगर पहले टूट जाते हैं तो रौंदे जायेंगे। बिल्कुल मूर्तिकार और मूर्ति की भूमिका में। हमे कष्ट होता है समस्या आती है क्युकी ईश्वर रूपी मूर्तिकार मुझे स्वरूप दे रहे होते हैं। अगर हम टूटे तो कचरा बनेंगे नही टूट कर सहन कर लिए तो पूजे जायेंगे। कई घरों में भी लोग अनेक प्रकार के परिस्थितियां,चुनौतियाँ,से घिरे होते हैं कभी कभी बुद्धि काम नही करती है। ऐसे में आम आदमी अपनी नाज़ुक आंतरिक परिस्थितियां,के कारण deepration का शिकार हो जाते हैं। लोग छोटी छोटी बातों में विचलित हो जाते हैं। और negative reaction creat करने लगते हैं। इस तरह से उन्हे परिस्थितियां,चुनौतियाँ, का प्रतिकूल प्रभाव झेलना पड़ता है। क्युकी negative or positive सब हमारे अंदर ही है। जैसा सोचेंगे वही होने लगता है।जिस पर जग हँसा है उसी ने इतिहास रचा है

इसका एक जीवंत उदाहरण हैं। किसी कस्बे में एक कर्मचारी अपने परिवार के साथ रहते थे। जमुई के थाढा एक जगह है वही पे। परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में रहता था। दो बेटे और लगभग पाँच बेटी थी। बड़l परिवार फिर भी खुशहाल। श्री तारिणी बाबू और उनकी धर्म पत्नी गायत्री परिवार से थे। उनकी बडी बेटी बचपन से ही पढ़ने लिखने मे तेज थी। शायद इसलिए दोनों माँ पिता मिलके बडी बेटी को पढाई । संयोग से ईश्वर ने सुना और आठवें क्लास में इनकी बडी बेटी नीलम  जी का बालिका विद्यापीठ में selection हो गया। ये उस समय की बात है जब पर्दा पर्था ज्यादा था। लड़कियों पे बंदिस थी। लेकिन उस समय में भी सविता देवी ने समाज़ के लोगो का भला बुरा सुनके। अपने सपनो को पुरा करने मे लगी रही। वो टूटी नही हिम्मत से सामना किया। ऐसे इनकी बडी बेटी बचपन से ही  पढ़ने में तेज थी। साधारण लड़की से बिल्कुल अलग थी। और उस इलाके मे सिर्फ तारिणी बाबू की बेटी ही सफल रही। आज भी मिशाल बनीं हुई हैं। लेकिन जीवन के बहुत से कष्ट को हँसते हँसते झेली है वो। जो लोग उनके मंज़िल को देख रहे है उन्हे ये पता नही के यहाँ तक आने के लिए कितना संघर्ष किया है। लगभग तारिणी बाबू की बडी बेटी नीलम जी का जीवन संघर्षमय ही रहा है। पर ऐसी स्तिथि मे भी ये हिम्मत नहीं हारी। एक ही माँ बाप के चार संतान सब अपने अपने कर्म और लगन के आधार पर मंज़िल तक पहुँचते हैं। जिसमे जितनी काबिलियत वो वैसे पायदान तक जा पाता है। किस्मत अपना अपना मेहनत अपना। आज के समय में आप ironlady कह सकते हो। मंज़िल को देखनेवाले कभी पैर के छाले भी देख लिया करो। इसलिए हमे अपने आप को भीतर से शशक्त बनाना जरूरी है। यही समय की मांग भी है। अपने एकाग्रता को विकसित करना चाहिए जो होगा ध्यान से मेडिटेशन से। इस से हमे अपनी आत्मा की बैटरी को फुल चार्ज करना होगा। इससे व्यक्ति की एकाग्रता की शक्ति बढती है। और अनेक प्रकार की शक्ति जागृत होती हैं और हम हर

परिस्थितियां,चुनौतियाँ, मे सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ते हैं। ध्यान से ही मनुष्य अपने को शांत रख सकता हैं। जो लोग ध्यान करते है उनकी मन की स्तिथि साधारण व्यक्ति की तुलना में ज्यादा संतुलित और सकारात्मक होती हैं। हमारा आत्मिक आकर्षण उपर उठ जाता हैं। आप सोचो एक ही समस्या को एक ही घर के चार लोग चार तरह से सोचा करते हैं क्यों। क्युकी उनकी सोच परिस्थितियां,चुनौतियाँ, पर नही उनके खुद के आत्मिक शक्ति, संस्कार, पर निर्भर करती हैं। इसलिए अपने आप को उर्जावान बनाये सकारात्मक बनाये। अपनी शक्ति को जागृत करे। 

 
*. हम ध्यान है। सोचो की हम क्या है- आंख? कान? नाक? संपूर्ण शरीर? मन या मस्तिष्क? नहीं हम इनमें से कुछ भी नहीं। ध्यान हमारे तन, मन और आत्मा (हम खुद) के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है। स्वयं को पाना है तो ध्यान जरूरी है। वहीं एकमात्र विकल्प है।
 
* ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है। आत्मिक शक्ति से मानसिक शांति की अनुभूति होती है। मानसिक शांति से शरीर स्वस्थ अनुभव करता है। ध्यान के द्वारा हमारी उर्जा केंद्रित होती है। उर्जा केंद्रित होने से मन और शरीर में शक्ति का संचार होता है एवं आत्मिक बल मिलता है। 
 

* ध्यान से विजन पॉवर बढ़ता है तथा व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। ध्यान से सभी तरह के रोग और शोक मिट जाते हैं। ध्यान से हमारा तन, मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांति, स्वास्थ्य और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। करे निरोगी रहे आत्मिक सुख शांति का अनुभव करे। मेडिटेशन मन को शांत करने में काफी लाभकारी माना जाता है।

Dislcaimer--+ उपरोक्त सभी जlनकारी अनेको मlध्यम से संकलित है और जीवन का अनुभव भी। कोशिश है अधिक से अधिक जानकारी दे आपको। और कुछ अपना विचार भी है। उम्मीद नहीं पूर्ण विश्वास है कि प्यार, आशीर्वाद प्राप्ति होते रहेंगे। कम संसाधन के वजह है कुछ कमी हो सकती हैं जिसका मुझे खेद है। 

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