जीवन और शांति first impression is last impression
शायद जीवन और शांति लगभग असंभव है। क्युकी जीवन में संतोष नही है। और संतोष मे ही माँ (mother) परमसुख है। बचपन से बुढ़ापा तक शांति की तलाश जारी रहती है। भागम भाग लगी रहती है। लेकिन जब तक शांति को सुख को जीवन को समझ पाते है तबतक उम्र बीत चुकी होती है। ये समझ नहीं पाते खाली हाथ रोते हुए जन्म हुआ और खाली हाथ ही चुपचाप मृत्यु को प्राप्त होना है। ये बीच का समय तो एक रंगमंच है। मृगत्रिष्ण l
है। ये जिंदगी भर की कमाई, ये रिश्ते नाते सबकुछ यही तक है। बचपन में खिलोऔना लेकर तत्काल कुछ छन की शांति मिलती थी।फिर थोड़ा बड़ा हुए तो cycle मे शांति देखी। फिर बड़ा हुआ तो motorcycle मे शुकुन मिला। थोड़ा आगे कार से। एक समय में exam का result मे शांति देखे। Result खराब आशांत हो गया। फिर बड़े हुए रोज़ी रोटी की तलाश जिसको मुक्कमल व्यवस्था मिला उनको खुशी और शांति मिली लेकिन तत्काल कुछ समय के लिए। फिर शादी की चिंता, बच्चे की चिंता, बेटी की पढाई। जिम्मेदारी बढी। सब कुछ समय के साथ हुआ पर शांति की खोज अभी तक जारी है। जिंदगी में शांति कुछ पल का था। शुरुआत में बचपन मे। अब संभव नहीं लगता हैं। मुझे बताने की कृपा करे की जीवन में शांति कब और कैसे मिलती है। जीवन का उद्देश्य क्या है और होना चाहिए। जिंदगी मानो रेत के रेगिस्तान में चल रही है दूर एक हरा पेड़ है दूर दूर तक पानी नही है। संघर्ष जारी कर के पेड़ तक पहुँचे तो फिर अगला पेड़ तक जाने की चिंता। थोड़ा और थोड़ा और के चक्कर में जीवन का मज़ा आनंद ही नहीं ले पाते हैं। कोशिश करे की पहले पेड़ तक जाने के रास्ते पर ही एंजॉय करे। यही तो जिंदगी है। जिंदगी जिंदादिली का नाम है।
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