जिंदगी मैं और स्वार्थ विश्व में सबसे ऊँचे शिव
कहा जाता है जिंदगी आसान नहीं होता आसान बनाना पड़ता है। सुखी शांति पूर्ण जिंदगी के लिए शाम, दाम, दंड, भेद, चारो नीतियाँ लगानी पड़ती है। ऐसे भी जंगल में सीधे पेड़ को ही सबसे पहले काटा जाता हैं। और संयोग या इत्तेफाक जिस पेड़ पर कुल्हाड़ी चल रही होती हैं उसका जरिया भी लकड़ी ही होता है। क्युकी कुल्हाडी मे लकड़ी का बेंत लगी होती हैं। ऐसे हमने आरा लकड़ी काटने की बडी औज़ार मे भी लकड़ी की बेंत देखी है। दूसरी बात जब जंगल मे लकडहारा लकड़ी काट के थक जाता हैं तो आश्रय भी पेड़ के नीचे ही लेता है। थोड़ा आराम करता है फिर लकड़ी काटने लग जाता है।मतलब साफ है रावण के अंत बिभीषन के इशारे पे हुआ। सोचने की शक्ति
आप कमा रहे हो खा रहे हो सबकुछ लगभग ठीक चल रहा है। लेकिन कहा जाता है की उपेक्षा पूरी हो तो लोभ नही पूरी हो तो क्रोध बढ़ता है। अब सभी को खुश कर पाना आपके बस की बात नही है। क्युकी सब की मानसिकता अलग -अलग है। किसी को आपके पैसे चाहीये। किसी को आपका घर। किसी को आपकी गाडी। या पता नहीं कोई ये भी सोच रहा हो की आपके पास सुख सुविधा नही रहनी चाहीये। आप मजबूर बेबस लाचार क्यों नही हो। जिसके कारण ओछी मानसिकता के लोग आप को अपना शिकार आसानी से बना सके। कुछ लोग तो जंगल के शिकारी कि तरह इसी ताक में इंतज़ार में रहते हैं। मतलब साफ है कितनी भी बडी मुशीबत समस्या आये। घबराना नहीं चाहीये। शांति से धीरज से सोच विचार कर काम लेना चाहिए। क्युकी लोग आजकल गिरते घरों के ईंट तक उठा ले जाते हैं। समय और लोगो की मानसिकता पूरी तरह से बदल चुकी हैं। लोभ, लालच, स्वार्थ का बोलबाला है। रिश्ते भी फायदे देख के निभाए जा रहे हैं। वक़्त की नजाकत
ऐसे में आप अपनी समस्या अगर सार्वजनिक करते हो तो सहानुभूति मिले न मिले। लोग आपको कमज़ोर समझ लेंगे। फिर आपकी भावना से खेलेंगे। क्षणिक तौर पे आपको विश्वास मे लेंगे। आपके सारी बात को जान लेने के बाद आप पे हावी होंगे। और जब तक आप समझ पाओगे तबतक पूरी तरह से वो आप पे हावी हो चुका होगा। और आपको सिर्फ पछतावा के और कुछ नही मिलेगा। क्युकी मक्कखंन वाले हाथ में चाकू भी होता है। मै और मेरी तन्हाई
इस लिए खुद पे विश्वास रखे। किसी एक पे आँखे मूंद के कभी भरोसा नही करे। अपनी शिक्षा के स्तर को बढ़ाये। अपनी अधिकार, शासन, कानून और नियम कि जानकारी रखे। परिवार से समाज़ से रिश्तेदारों से ताल मेल बनाके रखे। मिल नही सके तो बातचीत जरूर करते रहे। किसी से किसी बात से नाराज है तो परहेज करते हुए रिश्ते निभाए। किसी भी परिस्तिथि मे रिश्ता कभी खत्म नही करे। मेहनत से लगन से कोई भी काम करे। कभी भी अपने आप को भावनात्मक रूप से कमज़ोर नहीं पड़ने दे। किसी की बातों में आकर अपना कार्य और मंज़िल नही बदले। थोडी देर कि मुलाकात या बात चीत से आप किसी के व्यक्तित्व का अनुमान नही लगा सकते। इसके लिए पढ़े first impression is last
जीवन में स्वार्थ भावना
जब हम स्वार्थ भावना को अधिकतम स्तर तक बढ़ाते हैं, तब हम अकेलापन, संदेह, जलन, और अन्य दृष्टिकोण द्वारा व्यवहार करते हैं। इसलिए, हमें इस भावना को संतुलित रखने के लिए अपने साथीदारों, दोस्तों, परिवार के साथ नित नए संबंध बनाने की आवश्यकता होती है।
यदि हम जिंदगी में स्वार्थ को बढ़ावा नहीं देते हैं, तो हम अपने लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाएंगे। स्वार्थ न होने से हमारी उत्सुकता व क्रियाशीलता गुम हो जाएगी जो हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है।
स्वार्थ और इर्ष्या
स्वार्थ और इर्ष्या दोनों नकारात्मक भावनाएं होती हैं जो व्यक्ति के स्वास्थ्य और उनके संबंधों पर असर डालती हैं। स्वार्थ और इर्ष्या दोनों ही स्थितियों में व्यक्ति अपने लक्ष्यों के लिए दूसरों को नुकसान पहुंचा सकता है, जो उनके रिश्तों और जीवन में अनुचित प्रभाव डालता है।
स्वार्थ भावना आमतौर पर व्यक्ति के अहंकार और असफलता के कारण उत्पन्न होती है। जबकि इर्ष्या भावना आमतौर पर दूसरों की सफलता और समृद्धि से उत्पन्न होती है, जो व्यक्ति के समझ में उनसे सही व्यवहार न कर पाने के कारण हो सकती है।
स्वार्थ और हिंसा
स्वार्थ का अर्थ होता है अपने लाभ या फायदे की चिंता करना। यह मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है जो उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक होता है। लेकिन जब स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वह दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए स्वार्थ होना अच्छा है, लेकिन जब यह अधिक हो जाता है, तो यह बुरा हो सकता है।
हिंसा का अर्थ होता है दूसरों को चोट पहुंचाने या उन्हें नुकसान पहुंचाने की इच्छा। यह भी मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है, लेकिन यह दूसरों के जीवन और सुख को प्रभावित करता है जो उससे अलग होते हैं। हिंसा स्वीकार्य नहीं होती और समाज में उसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए गए हैं।
इन दो गुणों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। स्वार्थ उस स्तर तक सीमित होना चाहिए जहाँ वह व्यक्ति के लिए एक उपकार बनता हो.।
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स्वार्थ और हिंसा स्वार्थ और हिंसा दोनों मनुष्य के अंतर्निहित गुण होते हैं।
स्वार्थ का अर्थ होता है अपने लाभ या फायदे की चिंता करना। यह मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है जो उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक होता है। लेकिन जब स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वह दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए स्वार्थ होना अच्छा है, लेकिन जब यह अधिक हो जाता है, तो यह बुरा हो सकता है।
हिंसा का अर्थ होता है दूसरों को चोट पहुंचाने या उन्हें नुकसान पहुंचाने की इच्छा। यह भी मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है, लेकिन यह दूसरों के जीवन और सुख को प्रभावित करता है जो उससे अलग होते हैं। हिंसा स्वीकार्य नहीं होती और समाज में उसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए गए हैं।
*इन दो गुणों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। स्वार्थ उस स्तर तक सीमित होना चाहिए जहाँ वह व्यक्ति के लिए एक उपकार बनता हो। हिंसा से बचने
*हिंसा से बचने के लिए व्यक्ति को स्वयं को नियंत्रित करना सीखना चाहिए। ध्यान और अधिकार के साथ निर्णय लेना एक अच्छा तरीका है। अगर कोई व्यक्ति उस समय उचित रूप से सोचता है, तो वह अपनी हिंसा के प्रति नियंत्रित रहता है और उसे अपनी हिंसा के असली कारण का समाधान ढूंढने में मदद मिल सकती है।
अन्य उपायों में समाधान ढूंढना, संवाद करना, समझौता करना और कर्मचारी या विदेशियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना शामिल है। हिंसा से बचने के लिए अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना और दूसरों की भावनाओं का समझना भी महत्वपूर्ण है। इससे आप अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सफल हो सकते हैं और एक समर्थ और अनुशासित व्यक्ति बन सकते हैं।
स्वार्थ और हिंसा दोनों मनुष्य के अंतर्निहित गुण होते हैं।
स्वार्थ का अर्थ होता है अपने लाभ या फायदे की चिंता करना। यह मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है जो उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक होता है। लेकिन जब स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वह दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए स्वार्थ होना अच्छा है, लेकिन जब यह अधिक हो जाता है, तो यह बुरा हो सकता है।
हिंसा का अर्थ होता है दूसरों को चोट पहुंचाने या उन्हें नुकसान पहुंचाने की इच्छा। यह भी मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है, लेकिन यह दूसरों के जीवन और सुख को प्रभावित करता है जो उससे अलग होते हैं। हिंसा स्वीकार्य नहीं होती और समाज में उसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए गए हैं।
*इन दो गुणों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। स्वार्थ उस स्तर तक सीमित होना चाहिए जहाँ वह व्यक्ति के लिए एक उपकार बनता हो। हिंसा से बचने
अन्य उपायों में समाधान ढूंढना, संवाद करना, समझौता करना और कर्मचारी या विदेशियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना शामिल है। हिंसा से बचने के लिए अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना और दूसरों की भावनाओं का समझना भी महत्वपूर्ण है। इससे आप अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सफल हो सकते हैं और एक समर्थ और अनुशासित व्यक्ति बन सकते हैं।
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स्वार्थ और हिंसा स्वार्थ और हिंसा दोनों मनुष्य के अंतर्निहित गुण होते हैं।
स्वार्थ का अर्थ होता है अपने लाभ या फायदे की चिंता करना। यह मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है जो उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक होता है। लेकिन जब स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वह दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए स्वार्थ होना अच्छा है, लेकिन जब यह अधिक हो जाता है, तो यह बुरा हो सकता है।
हिंसा का अर्थ होता है दूसरों को चोट पहुंचाने या उन्हें नुकसान पहुंचाने की इच्छा। यह भी मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है, लेकिन यह दूसरों के जीवन और सुख को प्रभावित करता है जो उससे अलग होते हैं। हिंसा स्वीकार्य नहीं होती और समाज में उसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए गए हैं।
इन दो गुणों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। स्वार्थ उस स्तर तक सीमित होना चाहिए जहाँ वह व्यक्ति के लिए एक उपकार बनता हो। हिंसा से बचने।
स्वार्थ और हिंसा दोनों मनुष्य के अंतर्निहित गुण होते हैं।
स्वार्थ का अर्थ होता है अपने लाभ या फायदे की चिंता करना। यह मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है जो उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक होता है। लेकिन जब स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वह दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए स्वार्थ होना अच्छा है, लेकिन जब यह अधिक हो जाता है, तो यह बुरा हो सकता है।
हिंसा का अर्थ होता है दूसरों को चोट पहुंचाने या उन्हें नुकसान पहुंचाने की इच्छा। यह भी मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है, लेकिन यह दूसरों के जीवन और सुख को प्रभावित करता है जो उससे अलग होते हैं। हिंसा स्वीकार्य नहीं होती और समाज में उसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए गए हैं।
इन दो गुणों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। स्वार्थ उस स्तर तक सीमित होना चाहिए जहाँ वह व्यक्ति के लिए एक उपकार बनता हो। हिंसा से बचने।
दोस्ती निभाने की समस्या--
*किसी के बहकावे मे आकर किसी को बिना वजह तनाव देना। क्युकी आप दोस्ती निभा रहे हो। क्या उचित है
---नहीं, यह उचित नहीं है। दोस्ती एक विशेष रिश्ता होता है जिसमें संवेदनशीलता, समझदारी और समझौता होता है। आपके दोस्त को बिना किसी वजह के तनाव देना उनके साथ अधिकारहीन और असंवेदनशील हो सकता है और उन्हें असमंजस में डाल सकता है। इससे आपकी दोस्ती पर असर पड़ सकता है और वे आप पर विश्वास नहीं कर सकते हैं।
इससे बचने के लिए, आपको अपने दोस्त को समझने की कोशिश करनी चाहिए और उनसे खुलकर बात करनी चाहिए। यदि आपको उनसे कुछ नहीं कहना होता है, तो आप उनसे अपनी परेशानी का उल्लेख कर सकते हैं और उन्हें बता सकते हैं कि आप उनकी सहायता की आवश्यकता है। यदि आप अपने दोस्त से खुली और संवेदनशील ढंग से बात करते हैं, तो यह आपकी दोस्ती को मजबूत बनाएगा और उन्हें आप पर विश्वास होगा।
इससे बचने के लिए, आपको अपने दोस्त को समझने की कोशिश करनी चाहिए और उनसे खुलकर बात करनी चाहिए। यदि आपको उनसे कुछ नहीं कहना होता है, तो आप उनसे अपनी परेशानी का उल्लेख कर सकते हैं और उन्हें बता सकते हैं कि आप उनकी सहायता की आवश्यकता है। यदि आप अपने दोस्त से खुली और संवेदनशील ढंग से बात करते हैं, तो यह आपकी दोस्ती को मजबूत बनाएगा और उन्हें आप पर विश्वास होगा।
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