मंगलवार, 15 नवंबर 2022

महत्वकांक्षा

महात्वाकांक्षा और संवेदनशीलता


महात्वाकांक्षा एक व्यक्ति की वह उत्कृष्टता तक पहुंचने की इच्छा होती है जो कि उसके अधिकांश कार्यों और निर्णयों पर प्रभाव डालती है। इसे अंग्रेजी में "ambition" भी कहा जाता है।

महात्वाकांक्षा एक अच्छी बात हो सकती है, क्योंकि इससे व्यक्ति के अंदर संवेदनशीलता, सहनशीलता, और निर्णय की क्षमता बढ़ती है। इससे उन्हें उनकी जिंदगी में सफलता हासिल करने के लिए आवश्यक संसाधनों की तलाश में मदद मिल सकती है।

हालांकि, अधिक महात्वाकांक्षा के चलते व्यक्ति कभी-कभी अपने साथियों या आसपास के लोगों को अनावश्यक तनाव या दबाव में डाल सकता है। इसलिए, व्यक्ति को अपनी महात्वाकांक्षा को संतुलित रखने की क्षमता विकसित करनी चाहिए ताकि वह अपने उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए अपनी संयमिता और उत्साह को बनाए रख सके।

महत्वकांक्षा का उद्गम मन से होती है मन में सकारात्मक के साथ नकारात्मक विचार भी जन्म लेते हैं।जबकी आकांक्षा का उद्गम आत्मा से होता है और आत्मा कभी बुरे विचार का साथ नही देती है।वेदों के काल में आकांक्षा का प्रभाव अधिक था।लेकिन समय के साथ आकांक्षा का अस्तित्व घटते चला गया और महत्वाकांक्षा प्रबल होती गई।भरष्टआचार, चोरी, डकैती इसी का परिणाम है। महत्वकांक्षा स्वहित प्रधान होता है। लोग इसमें कुछ भी करने से नही कतराते है।लेकिन अगर अपनी बुद्धि विवेक बिन्दु पर टिकाकर रखी जाए तो ये विचार अपना असर नहीं दिखा पाते अन्यथा मछली चारे के लोभ में माया रूपी शिकारी के जाल में फंसकर दम तोड़ देती है।लालच के कारण कर्म खराब करने से पहले इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि इस छोटी सी जिन्दगी के दिन पूरे करने के बाद हम यहाँ से एक सुई भी नहीं ले जा सकते और किए गए एक एक कर्म का हिसाब देना पड़ेगा।

महत्वकांक्षा और आकांक्षा                                           ऐसी मान्यता है कि चंद्रगुप्त के गुरु और महामंत्री चाणक्य असल में इस कार्य के पुरोधा थे, लेकिन उन्होंने स्वयं इसे महत्वाकांक्षा की श्रेणी में रखा। एक ऐसी महत्वाकांक्षा, जिसमें व्यक्ति स्वयं के कल्याण के साथ-साथ दूसरों का कल्याण करता हुआ प्रतीत होता हो। यह सकारात्मक महत्वाकांक्षा जरूर है, लेकिन इसे पूरा करने में दूसरों के विचारों का या दूसरों का भी दमन हुआ होगा, जो नकारात्मक महत्वाकांक्षा है। दोनों ही प्रकार की महत्वाकांक्षा में स्वयं की इच्छापूर्ति की भावना प्राथमिक होती है। कभी-कभार महत्वाकांक्षा भी आकांक्षा में परिवर्तित हो जाती है।   

                                      महत्वकांक्षा और चरित्र                                                     महत्वकांक्षा को जिस रूप से देखते हैं उनका चरित्र भी वैसा ही हो जाता है। अगर ये भौतिक संसाधन के लिए है तो ये कभी नहीं खत्म होने वाली कड़ी है। ऐसे लोग संतोषी नही हो सकते हैं।                                                                  महत्वकांक्षा जब लोभ, लालच बन जाती--               सही दिशा के साथ महत्वकांक्षा इज़्ज़त, शोहरत, पद, पैसा सब देती हैं। लेकिन दिशा गलत होने पर ये बर्बादी की ओर ले जाती है। १. अच्छा कॉलोनी में पड़ोसी ने नई कार ली तो क्या मै नही ले सकता। २. यही पुराना furniture और interiour देख देख के ऊब चुका हूँ अब कुछ नया लिया जाए। ३. मुझे अपने रिश्तेदारों, कॉलोनी वाले, सहकर्मी मे सबसे अच्छा स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग बनाना है। भागलपुर और जमालपुर वाले रिश्तेदारों ने क्या समझ रखा है हमे। ४. मेरा साथी मेरे साथ ही जॉब मे आया और आज उसके साथ क्या चमत्कार हुआ की मेरा पूर्ति में दिक्कत जबकी साथी सहकर्मी को कभी घटता नही। जबकी मै संतुलित और बजट में चलता हूँ फिर भी। महँगे कपड़े, घर, गाडी सब है दोस्त के पास। यहाँ पर स्वाभिमान टूट जाता हैं और प्रतिस्पर्धा महत्वकांक्षा मे तब्दील हो जाती हैं। और अपनी जमीर का सौदा कर लिया जाता हैं। अंततः हम भी करेंगे। यकीनन कोई चमत्कार नही हुआ होता है। कहीं न कहीं कुछ हेरा - फेरी का कमाल होता है। (Extra income)              उपरोक्त तथ्यों से शुरुआत होती है लोभ- लालच, स्वार्थ,, भ्रष्टाचार का। जो धीरे धीरे ज्वाला का रूप धारण कर लेती है। और इंसान  को गलत और बईमान नियत का बना देती है। इस मृग तृष्णा मे इंसान ऐसे भटकता है की वापसी का रास्ता ही नही रहता। कुछ उदाहरण- जैसे आप ऐसे जगह पर हो जहाँ कुछ एक्स्ट्रा कमाई है। आप अपने उस जगह पर किसी को नही आने दोगे। और इसके लिए कुछ भी कर दोगे। झूठ, अफवाह, प्रताड़ित करोगे भी करवाओगे भी। कभी कभी ये स्वार्थ हिंसा पर भी उतारू हो जाती है। कहा जाता है की बड़े पेट वाले लोग गले ठीक से नही लगा पाते।                                                                         ""महत्वकांक्षा और कैरियर  ""                                                                महत्वकांक्षा से कैरियर मे सफलता जुड़ी है लेकिन जीवन में संतोष से बेहद कमज़ोर संबंध है। कुछ अद्धययन दर्शाते हैं की धन पद प्रतिष्ठा जैसे सफलता के मापदंडों से प्रेरित व्यक्तियों को व्यक्तिगत खुशी या ज्ञान हासिल करने से प्रेरित लोगो के मुकाबले कम मानसिक संतोष मिलता है। थोड़े अभ्यास और आत्म निरीक्षण के जरिये मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान के बिना महत्वकांक्षा को साथ लेकर चलना मुमकिन है। महत्वकांक्षा तक पहुँचने में अगर हमारा बाकी जीवन और पारिवारिक, समाज़िक्, प्रतिष्ठा का हनन नही हो। लोभ, लालच, स्वार्थ नही आये तो सब ठीक है। १. कर्म पर फोकस २. प्राथ मिकता तय करे ३. आगे बढ़ने की कोशिश ४. पैसे को महत्त्व नही दे ५. आभार और कृतज्ञ रहे। उन्नति को प्राप्त करने की इक्षा, बड़ा अमीर बनने की चाहत यही तो है महत्वकांक्षा। लेकिन उचित दिशा निर्देश के साथ। ६ महत्वकांक्षा को जीवन पर हावी होने देने के बजाय हुनर सीखने दूसरे लोगो के अच्छे गुण आदते अपनाना बेहतर होगा। जबकी महत्वकांक्षा जीवन के महत्वपूर्ण हिस्सों को प्रभावित करती हैं।                   आम आदमी की तीन चौथाई सामर्थ्य सम्पन्नता, कामुकता, और अहंता की खाई खोदते और पाटते रहने मे बीत जाती है वित्रिष्णा और व्यामोह के भव बंधन से यदि छुटकारा मिल सके तो दृष्टिकोण मे स्वर्ग तैरता दिखाई देगा। इस से छुटकारा ही मोक्ष है। उदर पूर्ति और परिवार व्यवस्था पर जितना समय और धन खर्च होता है। औसतन उतना ही अहंकार और प्रदर्शन मे खर्च हो जाता है। फैशन तो विशुद्ध रूप से इसी विडंबना की देन है। दूसरे की वाह वाही लूटने के लिए बिने गए जाल जंजाल से यदि पर्दा उठ जाए तो ये सब व्यंग्य और उपहास प्रतीत होगा। इस लिए सादा जीवन उच्च विचार कि नीति ही अंततः सार्थक सुखी और शांतिपूर्ण जीवन की नींव है। 

Disclamier-- उपरोक्त सभी तथ्य विभिन्न क्षेत्रों से संकलित है। कुछ व्यक्तिगत अनुभव भी। जो आप लोगो से साझा कर रहे है। 🙏

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