View of bhagalpur city bihar in diwali from bikramshila pool barari by queenrajthought hindi.blogspot.com.view of bhagalpur in diwali
diwali the festival of light & lamp.सोमवार, 24 अक्टूबर 2022
दीपावली

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022
Happy diwali wishes
Happy diwaliइस दिवाली घर की सफाई कन्मोरि मेथोड
दिवाली क्यों मनाई जाती है-- भगवान श्री राम और लक्ष्मण एवम माता सीता जब बनवास खत्म कर और लंकापति रावण का वध कर अधर्म पर धर्म की विजय स्थापित कर अयोध्या नगरी लौटने की खुशी में दिवाली मनाया गया। दूसरी कथा--जब श्रीकृष्ण ने इसी तिथि को राक्षस नरकासुर का वध किया था। तब द्वारिका नगरी की प्रजा ने दीप प्रज्ज्वलित कर उनको धन्यवाद दिया। तभी से दिवाली मनाया जाने लगा।
भारतीय संस्कृति में दीपक को सत्य और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
दिवाली में साफ- सफाई-- सभी लोग अपने अपने घरों की साफ सफाई करते है क्युकी साफ सफाई मे ईश्वर का वास रहता है। सकारात्मक ऊर्जा घर में आती है। घर के साथ साथ गली मोहल्ला भी साफ किया जाता है। इस बार कोनमेरि मेथोड से साफ सफाई करे। बिल्कुल अलग अनुभव होगा।
दिवाली की तैयारी- चुकी दिवाली की तैयारी तो पहले से ही हो रहा होता है। लेकिन दिवाली के दिन में खास हो जाती है। मिट्टी के दिये पानी में डुबोया जाता है।पूजा के स्थान से मूर्ति को हटाया जाता हैं। घर में लाइट और बत्ती से सजावट की जाती है। महिलाएं साफ सफाई, खान पान की व्यवस्था करती है। नये कपड़े रखे जाते हैं। मिठाई और पटाखा खरीद कर रखा जाता है। खिलौना चीनी से बनी मिठाई। और धान का लावा। इसका खास महत्व होता है दिवाली में। घरों में रंगाई पोताई होती है। सन् सनठि का भी विशेष महत्व है। मिट्टी का घरौंदा बनाया जाता है।
दिवाली की रात्रि में क्या क्या होता है-- दिन भर की तैयारी के साथ शाम मे दीपक और कुप्पी जो मिट्टी तेल, तिल तेल, से भरा रहता है इसको छत पे सजाकर रख दिया जाता है। शाम होते होते सभी लोग स्नान वगैरह करके नये नये कपड़े पहन लेते हैं। सभी मिलकर लक्ष्मी गणेश जी की पूजा अर्चना करते हैं। चढ़ावा मिठाई ,फल देते हैं। पूजा के स्थान पर घी के दिये दीपक जलाये जाते है। फिर तुलसी पौधा के पास। घर के चौखट पर। उसके बाद छत पर, घर से बाहर दीपक जलाया जाता है। खैर अब तो electrical लाइट बल्ब, झालर जलता है। लेकिन पूजा पारंपरिक तरीका से ही होता है। उसके बाद रंगोली बनाया जाता है। तरह तरह के पकवान बनाये जाते हैं। उसके बाद लगभग 9 बजे के आस- पास हुक्का- पाती खेला जाता है। जिसमे सन सनाथी को घर के चौखट पर जल रहे दीपक से जला के मन ही मन लक्ष्मी जी का ध्यान करते हुए सभी पुरुष एक साथ निकलते है। चौबटिया पे सभी अपना अपना सनाथी रखते हैं। फिर मोहल्ले के सभी लोग वहाँ एकत्रित होते हैं। आतिशबाजी होती है। उसमे से थोड़ा सा जला हुआ सनाथी घर ले आने की प्रथा है। उसी सनाथी से सुबह- सुबह महिलाएं टूटे सूप पंखा वगैरह को पीटते हुए घर से दरिद्र को बाहर और लक्ष्मी जी को घर में आने की विनती करते हैं। जब हुक्का पाती खेल लिया जाता है तब सभी घर आते हैं और घर की बडी बुजुर्ग महिलाएं थाली में चंदन दही, मिठाई लिए चौखट पे खड़ी रहती है। सभी बारी बारी से प्रणाम करते हैं महिलाएं चंदन लगाके और मिठाई खास तौर पे चीनी से बनी खिलौना और लड्डू देखे आशीर्वाद देती है।घर मे बने छोटे घरौंदे मे मिट्टी की कुलिया मे लावा धान का और चीनी से बने खिलौना रख के पूजा की जाती है और सुबह उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है। उसके बाद मोहल्ला के लोग भी घर घर जाके आशीर्वाद लेते हैं। एक दूसरे को बधाई देते हैं।
उसके बाद सभी एक साथ बैठे हुए खाना खाते हैं। मनोरंजन के रूप में कोओडी या ताश, लुडो, खेलते हैं। घर के सभी लोग एक साथ आतिशबाजी करते हैं। ये हमारी परंपरा है। सब जगह तरह तरह की परंपरा और मान्यता है।दिवाली में सावधानी-- सिंथेटिक कपड़े नही पहने। सूती वस्त्र का इस्तेमाल करे। ढीला -ढाला कपड़ा नही पहने जो जमीन को छूती हो। बच्चे को अकेला नही छोड़े। आतिशबाजी देख के करे। घर में पानी से भरी बाल्टी रखे। ज्यादा और तेज आवाज़ के पटाखा का उपयोग खुली जगह पर करे।
दिवाली से शिक्षा-- अधर्म पर धर्म की विजय। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के अनुसरण को करना। सेवा का भाव रखना। मर्यादित रहना। लोभ, इर्ष्या, स्वार्थ, को त्याग कर सत्कर्म और धर्म के रास्ते पर चलना।
दिवाली में खरीददारी-- मिट्टी के दिये और बर्तन ख़रीदे। क्युकी उनके घर भी दिवाली है। आपको धनतेरस में और फ्रीज, गोड्रेज़, मोटर कार, चांदी सोना खरीदना है। अच्छी बात है लेकिन ठंढ का मौसम आ गया रात को सोना कहाँ है। कुछ ऐसे भी लोग है। जिनकी मदद क्षमता मुताबिक करनी चाहिए। हमे।
Disclaimer-- उपरोक्त तथ्य सिर्फ विभिन्न माध्यमो से संकलित जानकारी साझा करना है। पुष्टि नहीं। अपना अनुभव आप तक पहुँचा देना है।

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