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शनिवार, 15 अक्टूबर 2022

🙏महापर्व छठ🙏

          🙏 महापर्व छठ🙏

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला महापर्व  छठ पूजा है। ऐसे सीधे तौर पर दिवाली के छः दिन बाद छठ पूजा (महापर्व छठ)होता है। पारिवारिक सुख समृद्धि व मनवांछित फल की प्राप्ति हेतु ये पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष, बूढ़े जवान समान रूप से कर सकते है छठ पर्व। इसमें मुख्य रूप से अस्ताचलगामी सूर्य देव की पूजा उपासना संध्याकाल मे और उदीयमान सूर्य देव की पूजा उपासना प्रातःकालीन मे की जाती है। छठ पूजा बहुत विधि -विधान और श्रधा भाव से की जाती है। कुछ राज्य में इसका खास महत्व है। बिहार, झारखंड, बंगाल, ऐसे नेपाल में भी छठ पर्व होता है। छठ पर्व

दिवाली के बाद छठ घाटो की सफाई 

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दिवाली के बाद से ही छठ पर्व की तैयारी शुरू हो जाती हैं। जिसमे बांस के डाला, टोकरी, सूप ज्यादा प्रचलित है। इसकी खरीददारी की जाती है। उसके बाद छठ व्रत करने वाले लोग के लिए गंगा किनारे या नदी, पोखर के किनारे घाट बनाया जाता हैं। जिससे व्रत करने वाले लोग को पूजा उपासना मे कोई दिक्कत नहीं हो। क्युकी छठ पर्व मे पानी में खड़ा होके सूर्य देव की पूजा उपासना की जाती है। 

गंगा स्नान (नहायखाय) 

इस दिन व्रत करने वाले लोग (छठ पूजा करने वाले महिला/पुरुष) गंगा स्नान करके संकल्प लेते हैं। छठ पर्व करने का। स्नान के बाद गंगाजल घर लाते हैं जो आगे छठ पूजा मे काम आता है। 

कद्दू -भात बनाके खाना

इस दिन बहुत नियम विधान से कद्दू और चने की सब्जी, अरवा चावल का भात, और कई तरह की सब्जी वगैरह साग खाने की प्रथा है। और प्रसाद स्वरूप इससे आस पास पड़ोस में भिजवाया भी जाता हैं। 

खरना 

इस दिन जिसे खरना कहते हैं। इसमें व्रत करने वाले लोग निराहार /उपवास मे रहते हैं। खरना मे गाय के दूध से और अरवा चावल और गुड मिलाकर खीर पुडी बनाये जाते हैं। फिर शाम मे इनसभी को केले के पत्ते पर भोग लगाया जाता हैं। पूजा अर्चना की जाती है। फिर प्रसाद के रूप में इसको वितरित किया जाता है। ये प्रसाद भी घर घर बटवाया जाता है। इस पूजा मे आप अजीब सी शांति का अनुभव करोगे। क्युकी शोर- शराबा वर्जित है। पुरा शहर, गाँव या यू कहे पुरा वातावरण एकदम शांत हो जाता है। इसमें मुख्य रूप से मिट्टी का चूल्हा और आम की लकड़ी का उपयोग काफी महत्व रखता है। ऐसे नये साफ सुथरी चूल्हे पर भी अब बनाने लगे हैं लोग। प्रेम से बोले छठ मैया की जय 🙏

अस्ताचलगामी सूर्यदेव की पूजा सांध्यकालीन अर्घ्य या पहली अर्घ्य

इस वर्ष october month के अंतिम सप्ताह में छठ पर्व मनाया जाएगा। (३० October) |इस दिन षष्ठी तिथि है शाम मे संध्याकालीन पूजा होती हैं। सुबह से काफी चहल पहल रहती है। इसी दिन दिन में डाला, सूप वगैरह तैयार किया जाता है। पकवान,, फल, फूल, पूजन सlमग्री तैयार किया जाता है। शाम तीन बजे के लगभग डाला और व्रत करने वाले लोग अपने अपने घर से छठ घाट की ओर रवाना होने लगते हैं। घर की महिलाएं, बच्चे, बूढ़े सभी टोली बनाकर घाट पहुँच जाते हैं। छठ गीत गाया जाता है। छठ घाट पर छठ व्रत करने वाले लोग गंगा नदी में स्नान के बाद कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव की पूजा उपासना करते हैं। 
बारी -बारी से सभी डाला और सूप जो फल, फूल और पूजन सामग्री से सुसज्जित रहता है उसे सूर्य देव को चढ़ाते है। घाट किनारे बैठी महिलाएं छठ पूजा गीत गा रही होती हैं। छठ घाट को पूरी तरह से सजाया जाता है। धूप दीप प्रज्ज्वलित होते रहता है। अगरबती, कपूर , शुद्ध गाय के घी से वातावरण सुगंधित रहता है। पुरा माहौल भक्तिमय रहता है। 
छठ घाट पर बच्चे पटाखे, फुलझडी से आतिशबाजी करते हैं। फिर पुनः वापस घर आते हैं। रात्रि में सबलोग मिलजुल के रहते है। व्रत करने वाले लोग की सेवा की जाती है। वो भी श्रधा भाव से। जो काफी सौभाग्य और पुण्य की बात होती हैं। gets 50% off all items

प्रातः कालीन अर्घ्य दूसरी अर्घ्य

इस दिन उदीयमान सूर्य देव की पूजा आराधना की जाती है। ये अंतिम दिन होता है। पूजा के बाद व्रत करने वाले लोग के लिए अलाव वगैरह की इंतज़ाम किया जाता हैं। पानी से बाहर आने के बाद  इन्हे प्रणाम किया जाता है। जो शुभ फलदायी होता है। चुकी कार्तिक माह में कड़ाके की ठंढ पडती है। उगते सूर्य देव की पूजा के साथ ही लोग अपने अपने घर आते हैं। पहले डाला और सूप का प्रसाद पंडितजी को दिया जाता है। कुछ लोग गाय माता को भी खिलाते है।उसके बाद व्रत करने वाले लोग ग्रहण करती हैं। उसके बाद प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है। पlरन के साथ ही छठ पूजा समाप्त हो जाता है। व्रत करने वाले लोग पहले हल्का गुनगुना दूध पीते हैं उसके बाद हल्का भोजन लेते हैं। फिर समान्य रूप से खाने पीने लगते हैं। (खुशी

छठ पूजा से जुडी पुरानी यादें😆सफरनामा

बात आज से लगभग बीस वर्ष पहले की है जब हमलोग बच्चे थे। हमारे नानी घर और दादीघर दोनों जगह छठ पूजा होती थी। दोनों जगह संयुक्त परिवार था। घर में फुआजी, पिताजी, चाचा जी, दादी जी एक साथ छठ करती थी। तो दूसरे ओर नानी जी। हमलोग सभी भाई बहन , मौसी, लोग एक साथ मिलते जुलते थे। छठ मे पुरा घर भरा पुरा था। हमलोग सभी छठ पूजा पूरे जोश, भक्ति, श्रधा भाव से मनाते थे। उस समय काफी ज्यादा ठंढ पडती थी। स्वेटर, शाल, टोपी के बाद भी ठंढ लगती थी। शायद वर्ष 1998 ई के आस पास। छठ पूजा में हमलोग सभी परिवार के लोग मामा, मौसा, हम, चचेरे  चचेरि भाई बहन सब पहली अर्घ्य के रात में एक साथ मिल बैठ के बातचीत, हँसी मज़ाक, खाना पीना किया करते थे। बहुत मन लगता था। जाने कहाँ गए वो दिन। 
--उपरोक्त जानकारी अपनी व्यक्तिगत पारिवारिक अनुभव पे आधारित है। तथा कुछ जानकारी अन्य माध्यम से संकलित है। ऐसे सबके अपने -अपने तरीके एवम विधि- विधान होता है। ये भी सच है। फिर भी अगर आप छठ पूजा करने की इच्छुक होते है तो श्रीमान पंडित जी से सलाह लेकर उसका अनुपालन करे। विश्वास है कि पढ़ कर अच्छा लगता होगा। तो please read&forward🙏

शनिवार, 27 अगस्त 2022

Work is worship

              कर्म

जैसे हज़ारों गाय मे बछडा अपनी माँ को ढूंढ लेता है वैसे ही कर्म कर्ता को ढूंढ ही लेता है। आप क्या अनुभव करते हो जब कोई पूजा अनुष्ठान करते हो तो मानो आपको ईश्वर की अनुभुती हो रही हो। अच्छी बात है पूजा अनुष्ठान सार्थक हुआ। लेकिन झूठ बोलते समय किसी के साथ बैमानी करते समय किसी का अपमान करते समय अपने स्वार्थ के लिए दूसरे को दुःख देते समय उचित कार्य नही करते समय क्या सोचते और अनुभव करते हो आप शांति से विचार करना। क्या इस समय में ईश्वर अपनी आँखे बंद कर लेते हैं।।कदआपी नही ईश्वर तो सब जगह है सब कुछ देखता है।


कर्म करो फल की आशा


यह कथन संस्कृत में "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" है। इसका अर्थ होता है कि आपके अधिकार केवल कर्म करने में हैं, फल की आशा किये बिना। इस कथन से समझाया जाता है कि आपको कर्म करने में जुटना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

इस कथन का मूल्य व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में बहुत उच्च है। इसे अपनाने से आप अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करते हुए उन्हें बेहतर तरीके से कर सकते हैं। यह आपको सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाने में मदद करता है। इसके अलावा, यह आपको अपने आप में संतोष और शांति लाने में भी मदद करता है।

इस कथन का अनुसरण करने से, आप अपनी उत्पादकता में सुधार करते हुए अपने कार्यों में निष्ठापूर्वक लग जाते हैं और फल अपने आप ही आपके पास आता है। इसके अलावा, यह आपको सफलता के बारे में निरंतर चिंता करने की आवश्यकता से दूर रखता है जो कि एक अधिक तनावपूर्ण जीवन का कारण बनता है।

गलत समय आपके अंदर से आत्मा की आवाज़ आती हैं लेकिन लोभ इर्ष्या स्वार्थ के वशिभूत होके आप उसको नज़रंदाज़ कर देते हो। लेकिन ईश्वर कुछ भी नज़रंदाज़ नही करता है। लोहा को उसके खुद के जंग से नष्ट होना पड़ता है। वैसे ही आपके पतन , समस्या, दबाओ, बीमारी खुद आपके वज़ह से होती है। प्रकृति का नियम है जो रोपोगे वही पाओगे। आम के बदले आम। बबूल के बदले बबूल। करना क्या है पाना क्या है खोना क्या है सब आप पे निर्भर करता है। 🙏🙏


जीवन में कर्म

जीवन में कर्म एक बहुत महत्वपूर्ण अवधारणा है जो हमारे दिनचर्या, सोच और भावनाओं को निर्दिष्ट करती है। कर्म हमारी चेतना और आचरण को निर्दिष्ट करता है और हमें उस दिशा में ले जाता है जो हमारे जीवन के उद्देश्य तथा आशाओं के साथ मेल खाती है।

कर्म एक सिद्धांत है जो कि हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होता है। कर्म अनुसार, हम अपनी जीवन पथ पर चलते हुए अपने कर्मों के अनुसार अपना भविष्य निर्माण करते हैं। जो भी हम करते हैं, उसके बदले में हमें उससे संबंधित फल मिलता है। यह सिद्धांत हमें यह भी समझाता है कि जीवन में सफलता अथवा असफलता का ज़िम्मेदार हम खुद होते हैं।

इसलिए, हमें हमेशा सकारात्मक कर्म करने की जरूरत होती है और दूसरों के लिए मदद करने में संतुलित होना चाहिए। 

  1. "कर्म ही जीवन का आधार है।" - महात्मा गांधी

  2. "कर्म करो, फल की चिंता मत करो।" - भगवद गीता

  3. "कर्म ज्योति नहीं होता, कर्म हमेशा उजाला देता है।" - स्वामी विवेकानंद

  4. "कर्म का फल नहीं, कर्म करने का तरीका महत्वपूर्ण है।" - स्वामी दयानंद सरस्वती

  5. "कर्म करने से न केवल आप अपने भाग्य को बदलते हैं, बल्कि आप उन सभी लोगों के लिए एक मिसाल भी बन जाते हैं जो आपकी देखरेख में होते हैं।" - अब्दुल कलाम    "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥"disclaimer-- उपरोक्त blog&content कुछ अपने अनुभव पे आधारित तथा कुछ अन्य माध्यमो से संकलित है। 

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