शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022

Happy diwali wishes

               Happy diwali
इस दिवाली घर की सफाई कन्मोरि मेथोड

खुशियों और प्रकाश का पर्व दिवाली इस बार 24 October 2022 को  मनाया जाएगा। कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दिवाली है। धनतेरस से शुरू हुआ ये प्रकाशोत्सव दिवाली भैया दूज के साथ समाप्त हो जाता है। 
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि-23oct को 6:03 मिनट से शुरू हो के 24oct को 05:7 मिनट तक। 
कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि--24oct को 05:28 से 25oct के शाम 04:18 तक। लक्ष्मी पूजा मुहूर्त-24oct शाम 6:53 मिनट से रात्रि 8:16 मिनट तक। विशेष जानकारी के लिए विशेषज्ञ पंडित जी से सलाह ले।wish you happy diwali

दिवाली क्यों मनाई जाती है--  भगवान श्री राम और लक्ष्मण एवम माता सीता जब बनवास खत्म कर और लंकापति रावण का वध कर अधर्म पर धर्म की विजय स्थापित कर अयोध्या नगरी लौटने की खुशी में दिवाली मनाया गया। दूसरी कथा--जब श्रीकृष्ण ने इसी तिथि को राक्षस नरकासुर का वध किया था। तब द्वारिका नगरी की प्रजा ने दीप प्रज्ज्वलित कर उनको धन्यवाद दिया। तभी से दिवाली मनाया जाने लगा। 

भारतीय संस्कृति में दीपक को सत्य और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। 

दिवाली में साफ- सफाई-- सभी लोग अपने अपने घरों की साफ सफाई करते है क्युकी साफ सफाई मे ईश्वर का वास रहता है। सकारात्मक ऊर्जा घर में आती है। घर के साथ साथ गली मोहल्ला भी साफ किया जाता है। इस बार कोनमेरि मेथोड से साफ सफाई करे। बिल्कुल अलग अनुभव होगा। 

दिवाली की तैयारी- चुकी दिवाली की तैयारी तो पहले से ही हो रहा होता है। लेकिन दिवाली के दिन में खास हो जाती है। मिट्टी के दिये पानी में डुबोया जाता है।पूजा के स्थान से मूर्ति को हटाया जाता हैं। घर में लाइट और बत्ती से सजावट की जाती है। महिलाएं साफ सफाई, खान पान की व्यवस्था करती है। नये कपड़े रखे जाते हैं। मिठाई और पटाखा खरीद कर रखा जाता है। खिलौना चीनी से बनी मिठाई। और धान का लावा। इसका खास महत्व होता है दिवाली में। घरों में रंगाई पोताई होती है। सन् सनठि का भी विशेष महत्व है।  मिट्टी का घरौंदा बनाया जाता है। 

दिवाली की रात्रि में क्या क्या होता है-- दिन भर की तैयारी के साथ शाम मे दीपक और कुप्पी जो मिट्टी तेल, तिल तेल, से भरा रहता है इसको छत पे सजाकर रख दिया जाता है। शाम होते होते सभी लोग स्नान वगैरह करके नये नये कपड़े पहन लेते हैं। सभी मिलकर लक्ष्मी गणेश जी की पूजा अर्चना करते हैं। चढ़ावा मिठाई ,फल  देते हैं। पूजा के स्थान पर घी के दिये दीपक जलाये जाते है। फिर तुलसी पौधा के पास। घर के चौखट पर। उसके बाद छत पर, घर से बाहर दीपक जलाया जाता है। खैर अब तो electrical लाइट बल्ब, झालर जलता है। लेकिन पूजा पारंपरिक तरीका से ही होता है। उसके बाद रंगोली बनाया जाता है। तरह तरह के पकवान बनाये जाते हैं। उसके बाद लगभग 9 बजे के आस- पास हुक्का- पाती खेला जाता है। जिसमे सन सनाथी  को घर के चौखट पर जल रहे दीपक से जला के मन ही मन लक्ष्मी जी का ध्यान करते हुए सभी पुरुष एक साथ निकलते है। चौबटिया पे सभी अपना अपना सनाथी रखते हैं। फिर मोहल्ले के सभी लोग वहाँ एकत्रित होते हैं। आतिशबाजी होती है। उसमे से थोड़ा सा जला हुआ सनाथी घर ले आने की प्रथा है। उसी सनाथी से सुबह- सुबह महिलाएं टूटे सूप पंखा वगैरह को पीटते हुए घर से दरिद्र को बाहर और लक्ष्मी जी को घर में आने की विनती करते हैं। जब हुक्का पाती खेल लिया जाता है तब सभी घर आते हैं और घर की बडी बुजुर्ग महिलाएं थाली में चंदन दही, मिठाई लिए चौखट पे खड़ी रहती है। सभी बारी बारी से प्रणाम करते हैं महिलाएं चंदन लगाके और मिठाई खास तौर पे चीनी से बनी खिलौना और लड्डू देखे आशीर्वाद देती है।घर मे बने छोटे घरौंदे मे मिट्टी की कुलिया मे लावा धान का और चीनी से बने खिलौना रख के पूजा की जाती है और सुबह उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है। उसके बाद मोहल्ला के लोग भी घर घर जाके आशीर्वाद लेते हैं। एक दूसरे को बधाई देते हैं।

उसके बाद सभी एक साथ बैठे हुए खाना खाते हैं। मनोरंजन के रूप में कोओडी या ताश, लुडो, खेलते हैं। घर के सभी लोग एक साथ आतिशबाजी करते हैं। ये हमारी परंपरा है। सब जगह तरह तरह की परंपरा और मान्यता है। 

दिवाली में सावधानी-- सिंथेटिक कपड़े नही पहने। सूती वस्त्र का इस्तेमाल करे। ढीला -ढाला कपड़ा नही पहने जो जमीन को छूती हो। बच्चे को अकेला नही छोड़े। आतिशबाजी देख के करे। घर में पानी से भरी बाल्टी रखे। ज्यादा और तेज आवाज़ के पटाखा का उपयोग खुली जगह पर करे। 

दिवाली से शिक्षा-- अधर्म पर धर्म की विजय। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के अनुसरण को करना। सेवा का भाव रखना। मर्यादित रहना। लोभ, इर्ष्या, स्वार्थ, को त्याग कर सत्कर्म और धर्म के रास्ते पर चलना। 

दिवाली में खरीददारी-- मिट्टी के दिये और बर्तन ख़रीदे। क्युकी उनके घर भी दिवाली है। आपको धनतेरस  में और फ्रीज, गोड्रेज़, मोटर कार, चांदी सोना खरीदना है। अच्छी बात है लेकिन ठंढ का मौसम आ गया रात को सोना कहाँ है। कुछ ऐसे भी लोग है। जिनकी मदद क्षमता मुताबिक करनी चाहिए। हमे। 

Disclaimer-- उपरोक्त तथ्य सिर्फ विभिन्न माध्यमो से संकलित जानकारी साझा करना है। पुष्टि नहीं। अपना अनुभव आप तक पहुँचा देना है। 


बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

डेंगू महामारी या बीमारी

           डेंगू महामारी या बीमारी(इसे भी जाने आस्था का केंद्र तिलडीहा शक्तिपीठ

डेंगू(dengue) वायरस युक्त मच्छर जब किसी (सावधान रहे सुरक्षित रहे )व्यक्ति को काटता है तो इसके डंक के माध्यम से डेंगू वायरस व्यक्ति के शरीर में पहुँच जाते हैं और कुछ एक दो दिन में ही डेंगू अपना असर उस व्यक्ति पर दिखाने लगता हैं। और अचानक तेज बुखार के साथ शुरू होता है। डेंगू मादा एडीज एजिप्टि नामक मच्छर के काटने से होता है। ये मच्छर छोटा और गहरे रंग का होता है। यह उपर नही उड़ सकता है। यह अधिकांशतः टखना या केहुनि पर काटता है। जीवन संघर्ष है

डेंगू के लक्षण---- इसमें ठंढ के साथ तेज बुखार आता है जो 104f या 105f के आस पास रहता है। कुछ अन्य लक्षण इस प्रकार है। 1. सिर मे तेज दर्द 2. जी मिचलाना 3. उल्टी आना 4. हड्डियों और मांशपेशियों और जोड़ों में दर्द 4. आँखों के पीछे दर्द 5. ग्रंथियों मे सुजन 6. गले में दर्द 7. मुँह का स्वाद बदल जाना या तीता लगना 8. त्वचा पर लाल चकता 8. गंभीर हालत में नाक, त्वचा या मुँह से खून आना। 9. बहुत ज्यादा कमज़ोरी लगना sucesstips of relationship

डेंगू कब ज्यादा सक्रिय होता है------ डेंगू मच्छर गड्ढे या बर्तन या फ्रीज़, एसि के जमे पानी में अपने अंडे देती है। प्रजनन करती है। ये हर तीन  दिन पर अंडे देती है। इसकी उम्र लगभग 6 से 8 सप्ताह तक होती हैं। ये सूर्योदय के दो घंटे बाद से सुर्यअस्त के कुछ घंटे पहले तक ज्यादा सक्रिय रहता है। इसी अवधि में ज्यादा डंक मारने का खतरा रहता है। ये july से october तक ज्यादा सक्रिय होता है। और ये ज्यादा उपर नही लगभग 3 या 4 फीट ऊंचा तक ही ज्यादा सक्रिय हो सकता है। how do manage cholestrol

डेंगू के काट लेने से क्या होता है--- काटने के बाद तेज ठंढ के साथ तेज बुखार आता है। दो से तीन दिन में खून में उपस्थित प्लेटलैटस् घटने लगता है वो भी तेजी से। जबकी समान्य व्यक्ति के शरीर में डेढ़ लाख से दो लाख या ढाई लाख के लगभग प्लेटलैटस होता है। जो घटके चालीस हजार या उससे भी कम हो सकता है। उपरोक्त लक्षण मच्छर काट ने के बाद का ही है। संकट में घबराये नही हिम्मत और साहस से काम ले

डेंगू कितने प्रकार के होते हैं। ----- मुख्य रूप से तीन प्रकार 1 .साधारण डेंगू या क्लासिकल स्टेज-- ये पहला और साधारण स्टेज है। इसको अगर नज़र अंदाज़ किये तब  ही  आगे गंभीर लक्षण और जानलेवा साबित हो सकता है। अगर इसी स्टेज मे सही समय पर उचित चिकित्सा सेवा मिल जाए और कुछ सावधानी के साथ देखभाल हो तो मरीज़ आसानी से ठीक हो सकता है। उपर के समान्य लक्षण इसी स्टेज से आते हैं। अगर इसको नज़र अंदाज़ किये तो ये 2nd स्टेज डेंगू हेमरेज़िक् बुखार DHF मे परिवर्तित हो जायेगा जो काफी खतरनाक स्टेज होता है। इसमें खून में उपस्थित प्लेटलैटेस् तेजी से घटने लगता हैं। इसमें मरीज़ के शरीर पर गहरे नीले काले रंग के छोटे या बड़े चकते देखे जा सकते हैं। कोशिश ज्यादा से ज्यादा यही करे की समय पर इलाज और जाँच पहले स्टेज मे ही हो। तुरंत बिना विलंब डॉक्टर से संपर्क किया जाए।, 3. डेंगू शॉक सिंड्रोम-- ये सबसे ज्यादा खतरनाक स्टेज होता है। इसमें शॉक जैसे लक्षण दिखते हैं। ये जानलेवा स्टेज है। इसमें ब्लड प्रेशर, पल्स वगैरह अचानक बहुत ज्यादा घट जाती है। बेचैनी बहुत बढ़ जाती है। ये स्टेज लम्बी अवधि तक बीमारी को नज़र अंदाज़ करने से होता है। ये लापरवाही का नतीजा है। पहले समान्य स्टेज और लक्षण को छोड़ कर सभी स्टेज मे तुरंत नज़दीकी अस्पताल या डॉक्टर से सम्पर्क करे। welcome my channel

डेंगू किसको ज्यादा प्रभावित करता है-- समान्यतः दस वर्ष के बच्चों को ज्यादा और कमज़ोर इम्यूनिटी वाले व्यक्ति को। 

बुखार आने पर क्या करे-- तत्काल अगर तेज बुखार हो तो चिकित्सक के कहे अनुसार tab pcm ले। शरीर में पानी की कमी नहीं होने दे। हैड्रोथेरेपी कर के बुखार कंट्रोल करे। Ors, शरबत ले। तुरंत नज़दीकी हॉस्पिटल सम्पर्क करे और जाँच करवाये। भूखे पेट नही रहे हल्का भोजन लेते रहे। 

डेंगू मे खान- पान परहेज--- चुकी डेंगू मे platelate घट जाता हैं इस लिए गिलोय और ऐलोवरा को नियमित रूप से सुबह शाम उचित मात्रा में सेवन करे। ये platelates घटने नही देगा। पपीता का पत्ता का रस भी तुरंत platelates बढ़ाता है। कुछ फल और सब्जी 1. नारियल पानी २. किवी ३. अनार ४. पपीता ५. स्ट्राबेरी ६. चुकन्दर का जुस ७.दूध ८. प्रोटीन युक्त भोजन। ९.  कच्चा फूला हुआ ओकरा हुआ मूंग। सावधानी और परहेज

डेंगू दूर कैसे करे--- उचित और सही साफ सफाई करके। घर में कहीं भी पानी या मकडे का जाला या किसी भी तरह की गंदगी जमा नही होने दे। २. घर के आस पास घास फुस  बढ़ने नही दे। ब्लीचिंग पाऊडर का छिड़काव् करते रहे। ३. Hit या कोई भी mosqito स्प्रे का उपयोग घर के कोनो मे, पलंग के नीचे करे। ४. बच्चों को फूल शर्ट और पैंट पेहनाएं। ५. रात में सोते समय मछरदानी का उपयोग करे। ६. घर के आस पास छोटे जलाशय मे गेम्बुसिया लेबिस्टर नामक छोटी मछली डाले ये डेंगू मच्छर को खाती है। ७. घर में पोछा लगाते समय पानी में केरोसिन तेल या फेण्याल, डाले। ७. फ्रीज, कूलर, ए सी की साफ सफाई निरन्तर करते रहे। ८. सबसे अहम बात प्रारंभिक लक्षण को बिल्कुल अनदेखा नही करे। 

कुछ रोचक तथ्य---डेंगू मध्य और दक्षिण अमेरिका तथा दक्षिण पूर्व एशिया में आम बीमारी होती हैं। सबसे पहले 1953 ई में फिलिपींस मे बेहद भीषण डेंगू रिपोर्ट किया गया था। American Society for microbiology की रिपोर्ट के मुताबिक दूसरे विश्व युद्ध के बाद के समय डेंगू  बहुत तेजी से फैलने लगा था।

Disclaimer- उपरोक्त जानकारी विभिन्न माध्यम से ली गई है। कोशिश है की ज्यादा से ज्यादा जानकारी दे सकु। फिर भी डॉक्टर का सलाह सर्वोपरि होता है। उसके बाद उचित साफ सफाई, खान- पान, परहेज। Please read & forward

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मंगलवार, 18 अक्टूबर 2022

तिलडीहा शक्तिपीठ

                           तिलडीहा शक्तिपीठ               तिलडीहा शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। यहाँ आराध्य देवी माँ कृष्ण काली भगवती की पूजा होती हैं।विशेष रूप से शारदीय नवरात्र और वासंती नवरात्र में माता के दरबार में लाखों श्रधालु आते हैं। इस शक्तिपीठ के मुख्य पुजारी मेढपति कहलाते है। वर्तमान मे इस शक्तिपीठ के मेढ़पति हरवल्लव दास के वंशज है। यहाँ सप्ताह भर रोज़ श्रधालु आते हैं पूजा पाठ करते हैं। अपनी मुरादे माँगते हैं जो माता के आशीर्वाद से प्राप्त भी होता है। गच्छति कबूल के मुताबिक चढ़ावा चढ़ाते है कोई लड्डू, फल, चुनरी, कुछ लोग पाठा की बलि भी देतेहैं
पूजन विधि तिलडीहा शक्तिपीठ--यहाँ पूजा तांत्रिक और बंगाली विधि से होता है। यहाँ की खासियत यह है कि एक मेढ़ पर कृष्ण, काली, दुर्गा, महिषासुर, शिव पार्वती, गणेश जी, कार्तिक जी सहित तेरह मूर्तियाँ बनाई जाती हैं। शायद इस लिए ये शक्तिपीठ तिलडीहा के नाम से विख्यात हो गया। प्रथम पूजा के दिन यहाँ 108 विल्वपत्र (बेल के पत्ते)  से पूजा की जाती है। पुनः दो कोहडे की बलि दी जाती है। चतुर्थ पूजा मे पान के पत्ते और केला के वृक्ष से पूजन होता है। उसके बाद सातवीं पूजा को मंडप पे माता की प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है। यह पूजन हेतु रात्रि में पंडितजी और मेढ़पती द्वारा माँ के आँख की पुतली बनाई जाती हैं और रात्रि में ही मंदिर के मुख्य गेट पर दो काला पाठा रखा जाता हैं। जिससे कि सुबह पट खुलते ही सर्वप्रथम पाठा पर नज़र पड़े। यहाँ आज भी बलि प्रथा जागृत है। यहाँ अष्टमी और नवमी को बलि दी जाती है। 

तेलडीहा शक्तिपीठ की स्थापना
बंगाल के दो भाई जो भगवती के उपासक थे। उनमे एक हरवल्लव दास के द्वारा 1603 ई में बडुआ नदी के किनारे १०५ नरमुंड के उपर माता के मंदिर की स्थापना की गई। जहाँ पहले ये दोनों भाई हरवंशपुर के दक्षिणी भाग में शमशान हुआ करता था और ये लोग यही पे तांत्रिक विद्या से पूजा आहुति करते थे। इनके वंशज का आश्रय भी मंदिर प्रांगण मे ही है। 
मंदिर की बनावट
प्रारंभ में सिर्फ मंदिर था  वो भी पुरा कच्ची। समय के साथ विकाश कार्य होता चला गया। और आज चारो तरफ पक्की सड़क है। मंदिर भव्य है। सुंदर और आकर्षक घेराबंदी है। लेकिन एक सबसे खास बात की माता का गर्भ गृह/माता की पिंडी आज भी कच्ची ही है। मिट्टी की। लोगों की मान्यता है कि ये माता की इक्षा थी। और यही वजह से शायद आजतक कच्ची ही है। सेवा और भक्ति इसे भी देखें
तिलडीहा शक्तिपीठ कहाँ है
बाँका जिला के  शंभुगन्ज (shambhuganj)  प्रखंड में छत्रहार पंचायत के हरवंशपुर ग्राम में माँ दुर्गा का तिलडीहा शक्तिपीठ अवस्थित् है। जो बिहार में है। 
तिलडीहा शक्तिपीठ कैसे जाए (सफरनामा
1,, मुख्य रूप से दो रेलवे स्टेशन है पहला भागलपुर रेलवे स्टेशन यहाँ से सुलतानगंज फिर सुलतानगंज से तारापुर। यहाँ से महज  एक किलोमीटर की दूरी पर माता का शक्तिपीठ है। 2,, दूसरा जमालपुर रेलवे स्टेशन यहाँ से आप बरियारपुर से तारापुर। या जमालपुर से सुलतानगंज रेलवे स्टेशन से तारापुर। चुकी तारापुर बाजार में ही शक्तिपीठ तिलडीहा है। तारापुर मे रात्रि विश्राम भी किया जा सकता है। 
अन्य मान्यता (सुख दुःख और जिंदगी
ऐसे तो सभी दिन यहाँ पूजा पाठ होते रहता है। लेकिन सप्ताह में दो दिन विशेष रूप से पूजा का काफी महत्व है मंगलवार( tuesday) और शनिवार (saturday)  । नवरात्रि में तो पूजा होता ही है। लेकिन सावन के महीनों में भी भक्तजन सुलतानगंज से जल भरकर यहाँ इस शक्तिपीठ मे पूजा करते हैं। यहाँ सच्चे मन से माँगी गई मुरादे पूरी होती हैं। इस शक्तिपीठ के पूजा अर्चना का विशेष महत्व है। 
इस शक्तिपीठ तिलडीहा शक्तिपीठ के आस पास के कुछ जिला और गाँव-/ जिला-- जमुई, मुंगेर, भागलपुर, बाँका,,, कुछ गाँव- कुर्माडीह, बंशीपुर, हरवंशपुर,
तिलडीहा शक्तिपीठ के भौगोलिक स्थिति- ये तारापुर बाजार से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर के मुख्य गेट पर एक भव्य द्वार है। एक पुल है जो बडुआ नदी के उपर और शक्तिपीठ  के मुख्य द्वार पर है। ये शक्तिपीठ बडुआ नदी के किनारे है। जिसमे वर्ष भर पानी रहती है। मंदिर के चारो तरफ खेत खलिहान बड़े बड़े गाछ वृक्ष है। सावन मे यहाँ का प्राकृतिक दृश्य काफी मनोरम प्रतीत होता है। मंदिर प्रांगण मे एक कुआँ है। मान्यता है कि पहले इसके जल से हाथ पैर धो लिया जाता है। शारदीय नवरात्र में यहाँ बहुत बड़ा मेले का आयोजन होता है। लाखों की संख्या में भक्तजन आते हैं और हज़ारों की संख्या में पाठा की बलि होती है। संयुक्त परिवार और नज़रिया
कुछ सुनहरे यादें-- बचपन में कई बार इस शक्तिपीठ मे माता के दर्शन और पूजा पाठ को गया हूँ। हमे बहुत ज्यादा आस्था और श्रधा है। पहाड़पुर से हवेली खड़गपुर होते हुए लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर तारापुर मे ये शक्तिपीठ पीठ है। पास होने के कारण अक्सर जाता हूँ। 
Disclaimer-- उपर की जानकारी विभिन्न माध्यमो से संकलित है। कुछ खुद का अनुभव है। उम्मीद है पसंद आया होगा। 🙏queenrajthoughthindi.blogspot.com
Special request please read & forward. 

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दर्द कम चिंता ज्यादा:- मध्यम वर्ग की जिंदगी

मध्यम वर्ग की ज़िंदगी : दर्द कम, चिंता ज्यादा 🌞 सुबह की शुरुआत सुबह के 10 बजे से पहले रोज़ की तरह मैं स्कूटी से ऑफिस जा रहा था।...