मंगलवार, 15 नवंबर 2022

महत्वकांक्षा

महात्वाकांक्षा और संवेदनशीलता


महात्वाकांक्षा एक व्यक्ति की वह उत्कृष्टता तक पहुंचने की इच्छा होती है जो कि उसके अधिकांश कार्यों और निर्णयों पर प्रभाव डालती है। इसे अंग्रेजी में "ambition" भी कहा जाता है।

महात्वाकांक्षा एक अच्छी बात हो सकती है, क्योंकि इससे व्यक्ति के अंदर संवेदनशीलता, सहनशीलता, और निर्णय की क्षमता बढ़ती है। इससे उन्हें उनकी जिंदगी में सफलता हासिल करने के लिए आवश्यक संसाधनों की तलाश में मदद मिल सकती है।

हालांकि, अधिक महात्वाकांक्षा के चलते व्यक्ति कभी-कभी अपने साथियों या आसपास के लोगों को अनावश्यक तनाव या दबाव में डाल सकता है। इसलिए, व्यक्ति को अपनी महात्वाकांक्षा को संतुलित रखने की क्षमता विकसित करनी चाहिए ताकि वह अपने उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए अपनी संयमिता और उत्साह को बनाए रख सके।

महत्वकांक्षा का उद्गम मन से होती है मन में सकारात्मक के साथ नकारात्मक विचार भी जन्म लेते हैं।जबकी आकांक्षा का उद्गम आत्मा से होता है और आत्मा कभी बुरे विचार का साथ नही देती है।वेदों के काल में आकांक्षा का प्रभाव अधिक था।लेकिन समय के साथ आकांक्षा का अस्तित्व घटते चला गया और महत्वाकांक्षा प्रबल होती गई।भरष्टआचार, चोरी, डकैती इसी का परिणाम है। महत्वकांक्षा स्वहित प्रधान होता है। लोग इसमें कुछ भी करने से नही कतराते है।लेकिन अगर अपनी बुद्धि विवेक बिन्दु पर टिकाकर रखी जाए तो ये विचार अपना असर नहीं दिखा पाते अन्यथा मछली चारे के लोभ में माया रूपी शिकारी के जाल में फंसकर दम तोड़ देती है।लालच के कारण कर्म खराब करने से पहले इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि इस छोटी सी जिन्दगी के दिन पूरे करने के बाद हम यहाँ से एक सुई भी नहीं ले जा सकते और किए गए एक एक कर्म का हिसाब देना पड़ेगा।

महत्वकांक्षा और आकांक्षा                                           ऐसी मान्यता है कि चंद्रगुप्त के गुरु और महामंत्री चाणक्य असल में इस कार्य के पुरोधा थे, लेकिन उन्होंने स्वयं इसे महत्वाकांक्षा की श्रेणी में रखा। एक ऐसी महत्वाकांक्षा, जिसमें व्यक्ति स्वयं के कल्याण के साथ-साथ दूसरों का कल्याण करता हुआ प्रतीत होता हो। यह सकारात्मक महत्वाकांक्षा जरूर है, लेकिन इसे पूरा करने में दूसरों के विचारों का या दूसरों का भी दमन हुआ होगा, जो नकारात्मक महत्वाकांक्षा है। दोनों ही प्रकार की महत्वाकांक्षा में स्वयं की इच्छापूर्ति की भावना प्राथमिक होती है। कभी-कभार महत्वाकांक्षा भी आकांक्षा में परिवर्तित हो जाती है।   

                                      महत्वकांक्षा और चरित्र                                                     महत्वकांक्षा को जिस रूप से देखते हैं उनका चरित्र भी वैसा ही हो जाता है। अगर ये भौतिक संसाधन के लिए है तो ये कभी नहीं खत्म होने वाली कड़ी है। ऐसे लोग संतोषी नही हो सकते हैं।                                                                  महत्वकांक्षा जब लोभ, लालच बन जाती--               सही दिशा के साथ महत्वकांक्षा इज़्ज़त, शोहरत, पद, पैसा सब देती हैं। लेकिन दिशा गलत होने पर ये बर्बादी की ओर ले जाती है। १. अच्छा कॉलोनी में पड़ोसी ने नई कार ली तो क्या मै नही ले सकता। २. यही पुराना furniture और interiour देख देख के ऊब चुका हूँ अब कुछ नया लिया जाए। ३. मुझे अपने रिश्तेदारों, कॉलोनी वाले, सहकर्मी मे सबसे अच्छा स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग बनाना है। भागलपुर और जमालपुर वाले रिश्तेदारों ने क्या समझ रखा है हमे। ४. मेरा साथी मेरे साथ ही जॉब मे आया और आज उसके साथ क्या चमत्कार हुआ की मेरा पूर्ति में दिक्कत जबकी साथी सहकर्मी को कभी घटता नही। जबकी मै संतुलित और बजट में चलता हूँ फिर भी। महँगे कपड़े, घर, गाडी सब है दोस्त के पास। यहाँ पर स्वाभिमान टूट जाता हैं और प्रतिस्पर्धा महत्वकांक्षा मे तब्दील हो जाती हैं। और अपनी जमीर का सौदा कर लिया जाता हैं। अंततः हम भी करेंगे। यकीनन कोई चमत्कार नही हुआ होता है। कहीं न कहीं कुछ हेरा - फेरी का कमाल होता है। (Extra income)              उपरोक्त तथ्यों से शुरुआत होती है लोभ- लालच, स्वार्थ,, भ्रष्टाचार का। जो धीरे धीरे ज्वाला का रूप धारण कर लेती है। और इंसान  को गलत और बईमान नियत का बना देती है। इस मृग तृष्णा मे इंसान ऐसे भटकता है की वापसी का रास्ता ही नही रहता। कुछ उदाहरण- जैसे आप ऐसे जगह पर हो जहाँ कुछ एक्स्ट्रा कमाई है। आप अपने उस जगह पर किसी को नही आने दोगे। और इसके लिए कुछ भी कर दोगे। झूठ, अफवाह, प्रताड़ित करोगे भी करवाओगे भी। कभी कभी ये स्वार्थ हिंसा पर भी उतारू हो जाती है। कहा जाता है की बड़े पेट वाले लोग गले ठीक से नही लगा पाते।                                                                         ""महत्वकांक्षा और कैरियर  ""                                                                महत्वकांक्षा से कैरियर मे सफलता जुड़ी है लेकिन जीवन में संतोष से बेहद कमज़ोर संबंध है। कुछ अद्धययन दर्शाते हैं की धन पद प्रतिष्ठा जैसे सफलता के मापदंडों से प्रेरित व्यक्तियों को व्यक्तिगत खुशी या ज्ञान हासिल करने से प्रेरित लोगो के मुकाबले कम मानसिक संतोष मिलता है। थोड़े अभ्यास और आत्म निरीक्षण के जरिये मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान के बिना महत्वकांक्षा को साथ लेकर चलना मुमकिन है। महत्वकांक्षा तक पहुँचने में अगर हमारा बाकी जीवन और पारिवारिक, समाज़िक्, प्रतिष्ठा का हनन नही हो। लोभ, लालच, स्वार्थ नही आये तो सब ठीक है। १. कर्म पर फोकस २. प्राथ मिकता तय करे ३. आगे बढ़ने की कोशिश ४. पैसे को महत्त्व नही दे ५. आभार और कृतज्ञ रहे। उन्नति को प्राप्त करने की इक्षा, बड़ा अमीर बनने की चाहत यही तो है महत्वकांक्षा। लेकिन उचित दिशा निर्देश के साथ। ६ महत्वकांक्षा को जीवन पर हावी होने देने के बजाय हुनर सीखने दूसरे लोगो के अच्छे गुण आदते अपनाना बेहतर होगा। जबकी महत्वकांक्षा जीवन के महत्वपूर्ण हिस्सों को प्रभावित करती हैं।                   आम आदमी की तीन चौथाई सामर्थ्य सम्पन्नता, कामुकता, और अहंता की खाई खोदते और पाटते रहने मे बीत जाती है वित्रिष्णा और व्यामोह के भव बंधन से यदि छुटकारा मिल सके तो दृष्टिकोण मे स्वर्ग तैरता दिखाई देगा। इस से छुटकारा ही मोक्ष है। उदर पूर्ति और परिवार व्यवस्था पर जितना समय और धन खर्च होता है। औसतन उतना ही अहंकार और प्रदर्शन मे खर्च हो जाता है। फैशन तो विशुद्ध रूप से इसी विडंबना की देन है। दूसरे की वाह वाही लूटने के लिए बिने गए जाल जंजाल से यदि पर्दा उठ जाए तो ये सब व्यंग्य और उपहास प्रतीत होगा। इस लिए सादा जीवन उच्च विचार कि नीति ही अंततः सार्थक सुखी और शांतिपूर्ण जीवन की नींव है। 

Disclamier-- उपरोक्त सभी तथ्य विभिन्न क्षेत्रों से संकलित है। कुछ व्यक्तिगत अनुभव भी। जो आप लोगो से साझा कर रहे है। 🙏

मंगलवार, 8 नवंबर 2022

जिंदगी मैं और स्वार्थ

                 जिंदगी मैं और स्वार्थ                            विश्व में सबसे ऊँचे शिव

कहा जाता है जिंदगी आसान नहीं होता आसान बनाना पड़ता है। सुखी शांति पूर्ण जिंदगी के लिए शाम, दाम, दंड, भेद, चारो नीतियाँ लगानी पड़ती है। ऐसे भी जंगल में सीधे पेड़ को ही सबसे पहले काटा जाता हैं। और संयोग या इत्तेफाक जिस पेड़ पर कुल्हाड़ी चल रही होती हैं उसका जरिया भी लकड़ी ही होता है। क्युकी कुल्हाडी मे लकड़ी का बेंत लगी होती हैं। ऐसे हमने आरा लकड़ी काटने की बडी औज़ार मे भी लकड़ी की बेंत देखी है। दूसरी बात जब जंगल मे लकडहारा लकड़ी काट के थक जाता हैं तो आश्रय भी पेड़ के नीचे ही लेता है। थोड़ा आराम करता है फिर लकड़ी काटने लग जाता है।मतलब साफ है रावण के अंत बिभीषन के इशारे पे हुआ।    सोचने की शक्ति

आप कमा रहे हो खा रहे हो सबकुछ लगभग ठीक चल रहा है। लेकिन कहा जाता है की उपेक्षा पूरी हो तो लोभ नही पूरी हो तो क्रोध बढ़ता है। अब सभी को खुश कर पाना आपके बस की बात नही है। क्युकी सब की मानसिकता अलग -अलग है। किसी को आपके पैसे चाहीये। किसी को आपका घर। किसी को आपकी गाडी। या पता नहीं कोई ये भी सोच रहा हो की आपके पास सुख सुविधा नही रहनी चाहीये। आप मजबूर बेबस लाचार क्यों नही हो। जिसके कारण ओछी मानसिकता के लोग  आप को अपना शिकार आसानी से बना सके। कुछ लोग तो जंगल के शिकारी कि तरह इसी ताक में इंतज़ार में रहते हैं। मतलब साफ है कितनी भी बडी मुशीबत समस्या आये। घबराना नहीं चाहीये। शांति से धीरज से सोच विचार कर काम लेना चाहिए। क्युकी लोग आजकल गिरते घरों के ईंट तक उठा ले जाते हैं। समय और लोगो की मानसिकता पूरी तरह से बदल चुकी हैं। लोभ, लालच, स्वार्थ का बोलबाला है। रिश्ते भी फायदे देख के निभाए जा रहे हैं। वक़्त की नजाकत

ऐसे में आप अपनी समस्या अगर सार्वजनिक करते हो तो सहानुभूति मिले न मिले। लोग आपको कमज़ोर समझ लेंगे। फिर आपकी भावना से खेलेंगे। क्षणिक तौर पे आपको विश्वास मे लेंगे। आपके सारी बात को जान लेने के बाद आप पे हावी होंगे। और जब तक आप समझ पाओगे तबतक पूरी तरह से वो आप पे हावी हो चुका होगा। और आपको सिर्फ पछतावा के और कुछ नही मिलेगा। क्युकी मक्कखंन वाले हाथ में चाकू भी होता है। मै और मेरी तन्हाई

इस लिए खुद पे विश्वास रखे। किसी एक पे आँखे मूंद के कभी भरोसा नही करे। अपनी शिक्षा के स्तर को बढ़ाये। अपनी अधिकार, शासन, कानून और नियम कि जानकारी रखे। परिवार से समाज़ से रिश्तेदारों से ताल मेल बनाके रखे। मिल नही सके तो बातचीत जरूर करते रहे। किसी से किसी बात से नाराज है तो परहेज करते हुए रिश्ते निभाए। किसी भी परिस्तिथि मे रिश्ता कभी खत्म नही करे। मेहनत से लगन से कोई भी काम करे। कभी भी अपने आप को भावनात्मक रूप से कमज़ोर नहीं पड़ने दे। किसी की बातों में आकर अपना कार्य और मंज़िल नही बदले। थोडी देर कि मुलाकात या बात चीत से आप किसी के व्यक्तित्व का अनुमान नही लगा सकते। इसके लिए पढ़े first impression is last

 impression  

जीवन में स्वार्थ भावना

जीवन में स्वार्थ एक ऐसी भावना है जो हमें खुशी, सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए खुद को ऊर्जावान बनाती है। स्वार्थ भावना हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए उत्साहित करती है। हालांकि, स्वार्थ की भावना के साथ अन्य भावनाओं को भी संतुलित रखना बहुत महत्वपूर्ण है।

जब हम स्वार्थ भावना को अधिकतम स्तर तक बढ़ाते हैं, तब हम अकेलापन, संदेह, जलन, और अन्य दृष्टिकोण द्वारा व्यवहार करते हैं। इसलिए, हमें इस भावना को संतुलित रखने के लिए अपने साथीदारों, दोस्तों, परिवार के साथ नित नए संबंध बनाने की आवश्यकता होती है।

यदि हम जिंदगी में स्वार्थ को बढ़ावा नहीं देते हैं, तो हम अपने लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाएंगे। स्वार्थ न होने से हमारी उत्सुकता व क्रियाशीलता गुम हो जाएगी जो हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है।

स्वार्थ और इर्ष्या

स्वार्थ कब इर्ष्या बन सकती है
स्वार्थ और इर्ष्या दोनों ही मनुष्य के मन में उठने वाली भावनाएं हैं। स्वार्थ भावना में व्यक्ति केवल अपने ही लाभ या सुख को सोचता है और अपनी ही खुशी के लिए दूसरों को नुकसान पहुंचाने में सक्षम होता है। जबकि इर्ष्या भावना में व्यक्ति दूसरों के अधिक सफल होने या उनके सुख-समृद्धि से उसे ईर्ष्या होती है।

स्वार्थ और इर्ष्या दोनों नकारात्मक भावनाएं होती हैं जो व्यक्ति के स्वास्थ्य और उनके संबंधों पर असर डालती हैं। स्वार्थ और इर्ष्या दोनों ही स्थितियों में व्यक्ति अपने लक्ष्यों के लिए दूसरों को नुकसान पहुंचा सकता है, जो उनके रिश्तों और जीवन में अनुचित प्रभाव डालता है।

स्वार्थ भावना आमतौर पर व्यक्ति के अहंकार और असफलता के कारण उत्पन्न होती है। जबकि इर्ष्या भावना आमतौर पर दूसरों की सफलता और समृद्धि से उत्पन्न होती है, जो व्यक्ति के समझ में उनसे सही व्यवहार न कर पाने के कारण हो सकती है।

स्वार्थ और हिंसा

स्वार्थ और हिंसा दोनों मनुष्य के अंतर्निहित गुण होते हैं।

स्वार्थ का अर्थ होता है अपने लाभ या फायदे की चिंता करना। यह मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है जो उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक होता है। लेकिन जब स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वह दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए स्वार्थ होना अच्छा है, लेकिन जब यह अधिक हो जाता है, तो यह बुरा हो सकता है।

हिंसा का अर्थ होता है दूसरों को चोट पहुंचाने या उन्हें नुकसान पहुंचाने की इच्छा। यह भी मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है, लेकिन यह दूसरों के जीवन और सुख को प्रभावित करता है जो उससे अलग होते हैं। हिंसा स्वीकार्य नहीं होती और समाज में उसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए गए हैं।

इन दो गुणों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। स्वार्थ उस स्तर तक सीमित होना चाहिए जहाँ वह व्यक्ति के लिए एक उपकार बनता हो.। 

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स्वार्थ और हिंसा

स्वार्थ और हिंसा दोनों मनुष्य के अंतर्निहित गुण होते हैं।

स्वार्थ का अर्थ होता है अपने लाभ या फायदे की चिंता करना। यह मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है जो उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक होता है। लेकिन जब स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वह दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए स्वार्थ होना अच्छा है, लेकिन जब यह अधिक हो जाता है, तो यह बुरा हो सकता है।

हिंसा का अर्थ होता है दूसरों को चोट पहुंचाने या उन्हें नुकसान पहुंचाने की इच्छा। यह भी मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है, लेकिन यह दूसरों के जीवन और सुख को प्रभावित करता है जो उससे अलग होते हैं। हिंसा स्वीकार्य नहीं होती और समाज में उसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए गए हैं।

*इन दो गुणों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। स्वार्थ उस स्तर तक सीमित होना चाहिए जहाँ वह व्यक्ति के लिए एक उपकार बनता हो। हिंसा से बचने


*हिंसा से बचने के लिए व्यक्ति को स्वयं को नियंत्रित करना सीखना चाहिए। ध्यान और अधिकार के साथ निर्णय लेना एक अच्छा तरीका है। अगर कोई व्यक्ति उस समय उचित रूप से सोचता है, तो वह अपनी हिंसा के प्रति नियंत्रित रहता है और उसे अपनी हिंसा के असली कारण का समाधान ढूंढने में मदद मिल सकती है।

अन्य उपायों में समाधान ढूंढना, संवाद करना, समझौता करना और कर्मचारी या विदेशियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना शामिल है। हिंसा से बचने के लिए अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना और दूसरों की भावनाओं का समझना भी महत्वपूर्ण है। इससे आप अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सफल हो सकते हैं और एक समर्थ और अनुशासित व्यक्ति बन सकते हैं।

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स्वार्थ और हिंसा

स्वार्थ और हिंसा दोनों मनुष्य के अंतर्निहित गुण होते हैं।

स्वार्थ का अर्थ होता है अपने लाभ या फायदे की चिंता करना। यह मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है जो उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक होता है। लेकिन जब स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वह दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए स्वार्थ होना अच्छा है, लेकिन जब यह अधिक हो जाता है, तो यह बुरा हो सकता है।

हिंसा का अर्थ होता है दूसरों को चोट पहुंचाने या उन्हें नुकसान पहुंचाने की इच्छा। यह भी मनुष्य की स्वभावी प्रवृत्ति होती है, लेकिन यह दूसरों के जीवन और सुख को प्रभावित करता है जो उससे अलग होते हैं। हिंसा स्वीकार्य नहीं होती और समाज में उसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए गए हैं।

इन दो गुणों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। स्वार्थ उस स्तर तक सीमित होना चाहिए जहाँ वह व्यक्ति के लिए एक उपकार बनता हो। हिंसा से बचने। 

दोस्ती निभाने की समस्या--

*किसी के बहकावे मे आकर किसी को बिना वजह तनाव देना। क्युकी आप दोस्ती निभा रहे हो। क्या उचित है
---नहीं, यह उचित नहीं है। दोस्ती एक विशेष रिश्ता होता है जिसमें संवेदनशीलता, समझदारी और समझौता होता है। आपके दोस्त को बिना किसी वजह के तनाव देना उनके साथ अधिकारहीन और असंवेदनशील हो सकता है और उन्हें असमंजस में डाल सकता है। इससे आपकी दोस्ती पर असर पड़ सकता है और वे आप पर विश्वास नहीं कर सकते हैं।

इससे बचने के लिए, आपको अपने दोस्त को समझने की कोशिश करनी चाहिए और उनसे खुलकर बात करनी चाहिए। यदि आपको उनसे कुछ नहीं कहना होता है, तो आप उनसे अपनी परेशानी का उल्लेख कर सकते हैं और उन्हें बता सकते हैं कि आप उनकी सहायता की आवश्यकता है। यदि आप अपने दोस्त से खुली और संवेदनशील ढंग से बात करते हैं, तो यह आपकी दोस्ती को मजबूत बनाएगा और उन्हें आप पर विश्वास होगा।


Disclaimer-- उपरोक्त सभी बातें मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। किरदार अलग भूमिका अलग परिवार अलग। क्युकी सभी के सोचने समझने के तरीके अलग अलग होते हैं। 🙏

शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

विश्व में सबसे ऊँचे शिव जी

                    विश्व में सबसे ऊँचा शिव जी की प्रतिमा

 दीवाली की तस्वीर

राजस्थान के राजसमंद जिले के नाथद्वारा मे विश्व की सबसे ऊँची भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की गई है।जो भारत के लिए गौरव की बात है। 

नाथद्वारा मे गणेश टेकरी पर 51 बीघा जमीन पर बने इस आस्था केंद्र मे भगवान शिव जी की प्रतिमा ध्यान और अल्लड   मुद्रा में विराजमान है। इसे मिराज ग्रुप के सी एम डी मदनलाल पॉलिवाल के द्वारा बनवाया गया है। इस मूर्ति की दर्शन 20km की दूरी से किया जा सकता हैं। इसे बनाने में लगभग 10 वर्ष से ज्यादा लगा है। इसकी नींव 2012 ई में रखा गया था। 

शिव जी के प्रतिमा का वजन लगभग तीन हजार टन है। इसे बनाने में लोहा, स्टील और जिंक का इस्तेमाल किया गया है। इस प्रतिमा का रंग कॉपर है। इस प्रतिमा का डिजाइन विंड टनल टेस्ट ऑस्ट्रेलिया में करवाया गया है। बरसात और धूप में भी इस प्रतिमा पर कोई असर नहीं होगा। 250km की तेज रफ्तार आँधी- तूफान भी इसका कुछ नही बिगाड़ पायेंगे। इसमें 280 फीट  ऊँचाई तक लिफ्ट लगा है। 

भगवान शिव की प्रतिमा के अभिषेक के लिए 5 - 5 हजार लीटर  क्षमता के दो बड़े तालाब बनाये गए हैं। इस लिफ्ट से श्रधालु अरावली की पहाड़ी का नजारा देख सकेंगे। 

कर्नाटक के मरुदेश्वर् मंदिर मे 123 फीट ऊँचा भगवान शिव की प्रतिमा तो नेपाल में कैलाश मंदिर में 143 फीट ऊँचाई फिर तमिलनाडु में आदियोग् मंदिर में 112 फीट ऊँची भगवान शिव की प्रतिमा है जबकी मोरिशस मे मंगल महादेव की 120 फीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा विराजमान हैं। तत्काल पूरे विश्व में सबसे ऊँची भगवान शिव की प्रतिमा 369 फीट ऊँची है। जो राजस्थान नाथद्वारा मे स्थापित है। प्रकाश पर्व दिवाली

यहाँ लगभग बीस देशों से भक्तजन पहुँच रहे हैं। यहाँ रोज़ लगभग एक लाख लोगो के  भोजन की व्यवस्था है। (दैनिक भास्कर पेज १.28oct) इस भगवान शिव की प्रतिमा का दर्शन 20km दूर से ही बिल्कुल साफ तौर पे किया जा सकता है। बहुत ही अद्भुत कला का परिचय देता है ये कलाकृति🙏तिलडीहा शक्तिपीठ

Disclaimer- उपरोक्त जानकारी विभिन्न माध्यमो से संकलित है। 🙏 उम्मीद है पसंद आयेगा। सिर्फ संकलित जानकारी पुष्टि नहीं। 


शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2022

बुढानाथ मंदिर

हमारी दिवाली। कुछ रोचक तस्वीर
एक तथ्य के मुताबिक ऋषि वशिष्ठ मुनि के द्वारा त्रेता युग में बुढानाथ मंदिर की स्थापना की गई थी।जो सर्वप्रथम बालवृध् उसके बाद वृहदेश्वर् नाथ तथा तत्काल परिवर्तित नाम बुढानाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम इस मंदिर में शिवलिंग की पूजा अर्चना की गई थी। शिवपुराण मे इसकी चर्चा की गई है। ये बिहार राज्य के भागलपुर जिला में है। जो गंगा के किनारे है। मंदिर में प्राचीन मूर्ति स्थापित है।मंदिर की बनावट,सजावट,भूगोलिक स्थिति बहुत सुंदर और मनमोहक है। मंदिर की कुछ तस्वीर प्रस्तुत कर रहे है।

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

महर्षि मेंही आश्रम कुप्पाघाट

;संत सेवी जी महाराज का आश्रम भागलपुर बिहार में है।तिलकामांझी से बरारी रोड मे जाना पड़ता है। मायागंज मोहल्ला मे है। जवाहर लाल नेहरू कॉलेज & अस्पताल भी यहीं पर है। यहाँ पे आपको अद्भुत शांति का अनुभव होगा। सत्संग और ध्यान मुख्य रूप से यहाँ होता है। जिसकी कुछ तस्वीर आपलोगो के समक्ष प्रस्तुत कर रहे है। आस पास के लोग इसे कुप्पाघाट आश्रम भी बोलते हैं। 

सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

दीपावली

       View of bhagalpur city bihar in diwali from bikramshila pool barari by queenrajthought hindi.blogspot.com.view of bhagalpur in diwali

diwali the festival of light & lamp. 

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

Happy diwali wishes

               Happy diwali
इस दिवाली घर की सफाई कन्मोरि मेथोड

खुशियों और प्रकाश का पर्व दिवाली इस बार 24 October 2022 को  मनाया जाएगा। कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दिवाली है। धनतेरस से शुरू हुआ ये प्रकाशोत्सव दिवाली भैया दूज के साथ समाप्त हो जाता है। 
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि-23oct को 6:03 मिनट से शुरू हो के 24oct को 05:7 मिनट तक। 
कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि--24oct को 05:28 से 25oct के शाम 04:18 तक। लक्ष्मी पूजा मुहूर्त-24oct शाम 6:53 मिनट से रात्रि 8:16 मिनट तक। विशेष जानकारी के लिए विशेषज्ञ पंडित जी से सलाह ले।wish you happy diwali

दिवाली क्यों मनाई जाती है--  भगवान श्री राम और लक्ष्मण एवम माता सीता जब बनवास खत्म कर और लंकापति रावण का वध कर अधर्म पर धर्म की विजय स्थापित कर अयोध्या नगरी लौटने की खुशी में दिवाली मनाया गया। दूसरी कथा--जब श्रीकृष्ण ने इसी तिथि को राक्षस नरकासुर का वध किया था। तब द्वारिका नगरी की प्रजा ने दीप प्रज्ज्वलित कर उनको धन्यवाद दिया। तभी से दिवाली मनाया जाने लगा। 

भारतीय संस्कृति में दीपक को सत्य और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। 

दिवाली में साफ- सफाई-- सभी लोग अपने अपने घरों की साफ सफाई करते है क्युकी साफ सफाई मे ईश्वर का वास रहता है। सकारात्मक ऊर्जा घर में आती है। घर के साथ साथ गली मोहल्ला भी साफ किया जाता है। इस बार कोनमेरि मेथोड से साफ सफाई करे। बिल्कुल अलग अनुभव होगा। 

दिवाली की तैयारी- चुकी दिवाली की तैयारी तो पहले से ही हो रहा होता है। लेकिन दिवाली के दिन में खास हो जाती है। मिट्टी के दिये पानी में डुबोया जाता है।पूजा के स्थान से मूर्ति को हटाया जाता हैं। घर में लाइट और बत्ती से सजावट की जाती है। महिलाएं साफ सफाई, खान पान की व्यवस्था करती है। नये कपड़े रखे जाते हैं। मिठाई और पटाखा खरीद कर रखा जाता है। खिलौना चीनी से बनी मिठाई। और धान का लावा। इसका खास महत्व होता है दिवाली में। घरों में रंगाई पोताई होती है। सन् सनठि का भी विशेष महत्व है।  मिट्टी का घरौंदा बनाया जाता है। 

दिवाली की रात्रि में क्या क्या होता है-- दिन भर की तैयारी के साथ शाम मे दीपक और कुप्पी जो मिट्टी तेल, तिल तेल, से भरा रहता है इसको छत पे सजाकर रख दिया जाता है। शाम होते होते सभी लोग स्नान वगैरह करके नये नये कपड़े पहन लेते हैं। सभी मिलकर लक्ष्मी गणेश जी की पूजा अर्चना करते हैं। चढ़ावा मिठाई ,फल  देते हैं। पूजा के स्थान पर घी के दिये दीपक जलाये जाते है। फिर तुलसी पौधा के पास। घर के चौखट पर। उसके बाद छत पर, घर से बाहर दीपक जलाया जाता है। खैर अब तो electrical लाइट बल्ब, झालर जलता है। लेकिन पूजा पारंपरिक तरीका से ही होता है। उसके बाद रंगोली बनाया जाता है। तरह तरह के पकवान बनाये जाते हैं। उसके बाद लगभग 9 बजे के आस- पास हुक्का- पाती खेला जाता है। जिसमे सन सनाथी  को घर के चौखट पर जल रहे दीपक से जला के मन ही मन लक्ष्मी जी का ध्यान करते हुए सभी पुरुष एक साथ निकलते है। चौबटिया पे सभी अपना अपना सनाथी रखते हैं। फिर मोहल्ले के सभी लोग वहाँ एकत्रित होते हैं। आतिशबाजी होती है। उसमे से थोड़ा सा जला हुआ सनाथी घर ले आने की प्रथा है। उसी सनाथी से सुबह- सुबह महिलाएं टूटे सूप पंखा वगैरह को पीटते हुए घर से दरिद्र को बाहर और लक्ष्मी जी को घर में आने की विनती करते हैं। जब हुक्का पाती खेल लिया जाता है तब सभी घर आते हैं और घर की बडी बुजुर्ग महिलाएं थाली में चंदन दही, मिठाई लिए चौखट पे खड़ी रहती है। सभी बारी बारी से प्रणाम करते हैं महिलाएं चंदन लगाके और मिठाई खास तौर पे चीनी से बनी खिलौना और लड्डू देखे आशीर्वाद देती है।घर मे बने छोटे घरौंदे मे मिट्टी की कुलिया मे लावा धान का और चीनी से बने खिलौना रख के पूजा की जाती है और सुबह उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है। उसके बाद मोहल्ला के लोग भी घर घर जाके आशीर्वाद लेते हैं। एक दूसरे को बधाई देते हैं।

उसके बाद सभी एक साथ बैठे हुए खाना खाते हैं। मनोरंजन के रूप में कोओडी या ताश, लुडो, खेलते हैं। घर के सभी लोग एक साथ आतिशबाजी करते हैं। ये हमारी परंपरा है। सब जगह तरह तरह की परंपरा और मान्यता है। 

दिवाली में सावधानी-- सिंथेटिक कपड़े नही पहने। सूती वस्त्र का इस्तेमाल करे। ढीला -ढाला कपड़ा नही पहने जो जमीन को छूती हो। बच्चे को अकेला नही छोड़े। आतिशबाजी देख के करे। घर में पानी से भरी बाल्टी रखे। ज्यादा और तेज आवाज़ के पटाखा का उपयोग खुली जगह पर करे। 

दिवाली से शिक्षा-- अधर्म पर धर्म की विजय। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के अनुसरण को करना। सेवा का भाव रखना। मर्यादित रहना। लोभ, इर्ष्या, स्वार्थ, को त्याग कर सत्कर्म और धर्म के रास्ते पर चलना। 

दिवाली में खरीददारी-- मिट्टी के दिये और बर्तन ख़रीदे। क्युकी उनके घर भी दिवाली है। आपको धनतेरस  में और फ्रीज, गोड्रेज़, मोटर कार, चांदी सोना खरीदना है। अच्छी बात है लेकिन ठंढ का मौसम आ गया रात को सोना कहाँ है। कुछ ऐसे भी लोग है। जिनकी मदद क्षमता मुताबिक करनी चाहिए। हमे। 

Disclaimer-- उपरोक्त तथ्य सिर्फ विभिन्न माध्यमो से संकलित जानकारी साझा करना है। पुष्टि नहीं। अपना अनुभव आप तक पहुँचा देना है। 


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