गुरुवार, 29 सितंबर 2022

परिस्थितियां और जीवन

 परिस्थितियां और जीवन

जीवन में जितनी भी परिस्थितियां आये उसे सहन करके पार करे या सामना करते हुए। क्युकी अगर ऐसे में आप की हिम्मत टूटी, आप हार माने तो परिस्थितियां भी और अगला इंसान भी आपको रौंदना शुरू कर देंगे। जीवन मे परिस्थितियां, चुनौतियाँ, समस्या आती हैं क्युकी संघर्ष ही जिंदगी है। तो ये हमे परखने आती हैं। हमे कुछ बनाना चाहती हैं। मतलब अपने उपर फेके गए कंकड़ से आप घर बनाओ। इस विपरित समय में आप डटे रहो, सामना करो, अपने अंदर सहंशाक्ति विकसित करते हुए सकारात्मक ऊर्जा के साथ।जब हम पूर्ण मूर्ति के रूप में तैयार हो जाते हैं तो आने वाले समय में लोग उनको ही अपना आइडल( आदर्श) मानते हैं। लेकिन जो पहले सह करजो पत्थर मूर्तिकार के ठुकाई, घिसाई, झेल लेता है वो मूर्ति के रूप में पूजा जाता हैं सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए जीवन के रास्ते में आगे बढ़ते हैं जरूर वो मंज़िल को प्राप्त कर ही लेते हैं। जीवन चक्र में सुख और दुःख जरूर आता है तो हमें सोचना होगा कि पहले सहन करना है या बाद में। पहले सहन करने पर बाद में पूजे जायेंगे। अगर पहले टूट जाते हैं तो रौंदे जायेंगे। बिल्कुल मूर्तिकार और मूर्ति की भूमिका में। हमे कष्ट होता है समस्या आती है क्युकी ईश्वर रूपी मूर्तिकार मुझे स्वरूप दे रहे होते हैं। अगर हम टूटे तो कचरा बनेंगे नही टूट कर सहन कर लिए तो पूजे जायेंगे। कई घरों में भी लोग अनेक प्रकार के परिस्थितियां,चुनौतियाँ,से घिरे होते हैं कभी कभी बुद्धि काम नही करती है। ऐसे में आम आदमी अपनी नाज़ुक आंतरिक परिस्थितियां,के कारण deepration का शिकार हो जाते हैं। लोग छोटी छोटी बातों में विचलित हो जाते हैं। और negative reaction creat करने लगते हैं। इस तरह से उन्हे परिस्थितियां,चुनौतियाँ, का प्रतिकूल प्रभाव झेलना पड़ता है। क्युकी negative or positive सब हमारे अंदर ही है। जैसा सोचेंगे वही होने लगता है।जिस पर जग हँसा है उसी ने इतिहास रचा है

इसका एक जीवंत उदाहरण हैं। किसी कस्बे में एक कर्मचारी अपने परिवार के साथ रहते थे। जमुई के थाढा एक जगह है वही पे। परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में रहता था। दो बेटे और लगभग पाँच बेटी थी। बड़l परिवार फिर भी खुशहाल। श्री तारिणी बाबू और उनकी धर्म पत्नी गायत्री परिवार से थे। उनकी बडी बेटी बचपन से ही पढ़ने लिखने मे तेज थी। शायद इसलिए दोनों माँ पिता मिलके बडी बेटी को पढाई । संयोग से ईश्वर ने सुना और आठवें क्लास में इनकी बडी बेटी नीलम  जी का बालिका विद्यापीठ में selection हो गया। ये उस समय की बात है जब पर्दा पर्था ज्यादा था। लड़कियों पे बंदिस थी। लेकिन उस समय में भी सविता देवी ने समाज़ के लोगो का भला बुरा सुनके। अपने सपनो को पुरा करने मे लगी रही। वो टूटी नही हिम्मत से सामना किया। ऐसे इनकी बडी बेटी बचपन से ही  पढ़ने में तेज थी। साधारण लड़की से बिल्कुल अलग थी। और उस इलाके मे सिर्फ तारिणी बाबू की बेटी ही सफल रही। आज भी मिशाल बनीं हुई हैं। लेकिन जीवन के बहुत से कष्ट को हँसते हँसते झेली है वो। जो लोग उनके मंज़िल को देख रहे है उन्हे ये पता नही के यहाँ तक आने के लिए कितना संघर्ष किया है। लगभग तारिणी बाबू की बडी बेटी नीलम जी का जीवन संघर्षमय ही रहा है। पर ऐसी स्तिथि मे भी ये हिम्मत नहीं हारी। एक ही माँ बाप के चार संतान सब अपने अपने कर्म और लगन के आधार पर मंज़िल तक पहुँचते हैं। जिसमे जितनी काबिलियत वो वैसे पायदान तक जा पाता है। किस्मत अपना अपना मेहनत अपना। आज के समय में आप ironlady कह सकते हो। मंज़िल को देखनेवाले कभी पैर के छाले भी देख लिया करो। इसलिए हमे अपने आप को भीतर से शशक्त बनाना जरूरी है। यही समय की मांग भी है। अपने एकाग्रता को विकसित करना चाहिए जो होगा ध्यान से मेडिटेशन से। इस से हमे अपनी आत्मा की बैटरी को फुल चार्ज करना होगा। इससे व्यक्ति की एकाग्रता की शक्ति बढती है। और अनेक प्रकार की शक्ति जागृत होती हैं और हम हर

परिस्थितियां,चुनौतियाँ, मे सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ते हैं। ध्यान से ही मनुष्य अपने को शांत रख सकता हैं। जो लोग ध्यान करते है उनकी मन की स्तिथि साधारण व्यक्ति की तुलना में ज्यादा संतुलित और सकारात्मक होती हैं। हमारा आत्मिक आकर्षण उपर उठ जाता हैं। आप सोचो एक ही समस्या को एक ही घर के चार लोग चार तरह से सोचा करते हैं क्यों। क्युकी उनकी सोच परिस्थितियां,चुनौतियाँ, पर नही उनके खुद के आत्मिक शक्ति, संस्कार, पर निर्भर करती हैं। इसलिए अपने आप को उर्जावान बनाये सकारात्मक बनाये। अपनी शक्ति को जागृत करे। 

 
*. हम ध्यान है। सोचो की हम क्या है- आंख? कान? नाक? संपूर्ण शरीर? मन या मस्तिष्क? नहीं हम इनमें से कुछ भी नहीं। ध्यान हमारे तन, मन और आत्मा (हम खुद) के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है। स्वयं को पाना है तो ध्यान जरूरी है। वहीं एकमात्र विकल्प है।
 
* ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है। आत्मिक शक्ति से मानसिक शांति की अनुभूति होती है। मानसिक शांति से शरीर स्वस्थ अनुभव करता है। ध्यान के द्वारा हमारी उर्जा केंद्रित होती है। उर्जा केंद्रित होने से मन और शरीर में शक्ति का संचार होता है एवं आत्मिक बल मिलता है। 
 

* ध्यान से विजन पॉवर बढ़ता है तथा व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। ध्यान से सभी तरह के रोग और शोक मिट जाते हैं। ध्यान से हमारा तन, मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांति, स्वास्थ्य और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। करे निरोगी रहे आत्मिक सुख शांति का अनुभव करे। मेडिटेशन मन को शांत करने में काफी लाभकारी माना जाता है।

Dislcaimer--+ उपरोक्त सभी जlनकारी अनेको मlध्यम से संकलित है और जीवन का अनुभव भी। कोशिश है अधिक से अधिक जानकारी दे आपको। और कुछ अपना विचार भी है। उम्मीद नहीं पूर्ण विश्वास है कि प्यार, आशीर्वाद प्राप्ति होते रहेंगे। कम संसाधन के वजह है कुछ कमी हो सकती हैं जिसका मुझे खेद है। 

बुधवार, 28 सितंबर 2022

परिवार ((एकल/संयुक्त))

  परिवार (एकल/संयुक्त) 

      परिवार क्या है। 

क्लेयर के  मुताबिक---परिवार से हम संबंधों की वह व्याख्या समझते हैं जो माता- पिता तथा उनके संतानो के मध्य पाई जाती है। एक छत के नीचे जब कई लोग एक साथ रहते हैं। और आपस में संबंधी रहते हैं। वो संबंध रक्त का, भावना का, रिश्ता का होता है। सभी मिलजुलकर खाना- पीना , सोना, जागना,सुख दुःख में एक दूसरे का साथ देते हैं। वही परिवार होता हैं। समाजीकरण का आरंभ परिवार से ही होता है। परिवार द्वारा छोटे बच्चों में आत्म अनुशासन तथा  समाज़िक् गतिविधि की रुचि बढती है। 

1, परिवार एक स्थायी संस्था के समान है। आप ये भी पढ़े- सकारात्मक और नकारात्मक
2, बच्चों की पहली पाठशाला है। 
3, परिवार लैंगिक संबंध पर आधारित होता है। 
4, मानव समाज़ की आधारभूत तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण हिस्सा है परिवार। 
5, परिवार रक्त संबंध पर आधारित होता है। 

पेस्टालlजी__ परिवार प्यार और स्नेह का केंद्र है और बच्चों का प्रथम पाठशाला है❤। 

Family(english) =Famulus(latin) =servent

लैटिन भाषा में  परिवार मे माता- पिता, बच्चे, नौकर और गुलाम भी आते हैं। जबकी समान्य रूप से परिवार मे माता पिता और बच्चे को शामिल किया जाता है। 

परिवार के प्रकार ,१,--रहने वाले के आधार पे।( a) संयुक्त परिवार( b) एकाकी परिवार ,२,--सामlजिक, आर्थिक गतिविधि के आधार पर( a)गतिशील परिवार( ब) रूढ़िवादी परिवार। । । संयुक्त परिवार-- इसमें कई पीढी के लोग एक साथ एक छत के नीचे निवास करते हैं। ये वृहत परिवार होता है इसमें ज्यादा सदस्य रहते हैं।  इसमें दादा- दादी, चाचा- चाची, बुआ, माता- पिता तथा उनके संतान रहती है। एशिया के कई देशों में विस्तृत या संयुक्त परिवार रहते हैं। ऐसे परिवार का सही और सटीक परिभाषा देना कठिन है जो समाज़ के हर वर्ग में सटीक बैठती हो।। 

ऐसे हम भी संयुक्त परिवार मे ही रहा हूँ। हमने परदादा और पर नाना मतलब अपने से उपर तीन पीढी को देखा है उनके साथ रहा हूँ। पिता के पिता=दादा। मुझे याद है वो पौष का महिना सुबह सवेरे प्रदादा के साथ बोर्सी की आग के पास बैठे हुए रामायण, महाभारत के खिस्से सुनना। वो मंत्र का ज्ञान। वो कहानी। घंटो रमे रहते थे हम ना भूख न प्यास। अजब का नशा था। अगर माँ पिताजी के द्वारा डांट पडी तो दादा लोग बचा लेते थे। समय कैसे बीत जाती थी पता नहीं चलता था। कभी तनाव, अकेलापन, महसूस ही नही हुआ। वो समय याद करके मन तरो ताजा हो जाता हैं। सभी लोग मिलजुल के साथ रहते थे। सभी का काम बाँट दिया गया था। किसी को किसी भी तरह की दिक्कत होती थी तो सभी लोग मिल बैठ के उनको सहारा देते थे।जटिल समस्या का समाधान बड़े बुजुर्ग आसानी से अपने अनुभव से कर दिया करते थे। जो बिल्कुल सटीक निर्णय होता था। हमलोग सभी भाई बहन मिलाके दस बारह बच्चे थे। चचेरे फूफेरे मिलके।सभी साथ ही रहते थे। समय के साथ सभी अलग अलग होते चले गए। आज वो घर वीरान पड़ा है। विश्वास नहीं होता वही घर है। क्युकी आजकल तो एक आदमी पे एक कमरा भी काफी नही है। क्युकी पहले वाली बात नही है। बटवारा भाई भाई का

"" दीवार की किसी खोखल मे पीपल का पत्ता उड़ता हुआ   बैठ जाता हैं और किसी को पता नहीं चलता--कहाँ से हवा आई थी, इंटो के किस दरार् मे एक बीज़ उड़ता हुआ दुबक आया था। मिट्टी और गारे के भीतर् एक हल्की सी सिहरन उठी और महीनों बाद जहाँ टूटी दीवार थी, वहाँ हरे पेड़ लहरा रहे थे।। Nv

संयुक्त परिवार के मुखिया दादा जी हुआ करते थे। ये परिवार समाज़िक् जीवन की महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें समाज़िक् संबंध सिर्फ व्यक्ति तक नहीं परिवार से भी होते हैं। इसी पद्धति में एक गाँव से दूसरे गाँव के परिवार को उत्सव, शादी etc मे सपरिवार का आमंत्रण भेजा जाता था। कुछ खामी भी होती हैं संयुक्त परिवार मे ,१,ये पितृसतात्मक् परिवार होता है। २, महिलाओं को कुछ मामले मे नज़रंदाज़ भी किया जाता है। इनको कभी कभी घर के सारे काम करने पड़ सकते हैं। जिनसे इन्हे खुद पे ध्यान देने का मौका नहीं मिलता है। माँ का चुंबन और पिता की डांट

फिर भी संयुक्त परिवार ही बेहतर होता है। लेकिन अब ये प्रचलन लगभग समाप्त हो रहा है। संयुक्त परिवार कम होते जा रहा है। लोगों मे लोभ, लालच, इर्ष्या, भाव बढ़ गया है। रिश्ते और रिश्तेदार फायदे और जरूरत तक ही सीमित है। हाल चाल, व्यवहार, अतिथि देवो भवह; लगभग समाप्त हो गया है। लेकिन इसका खामियाज़ा सभी भुगत रहे हैं। लोगो से बात करने वाले की कमी है। तनाव मे जी रहे हैं लोग। बेचैन है। रोग ग्रस्त और तनाव ग्रस्त हैं लोग। आपलोग को क्या पसंद है एकाकी या संयुक्त परिवार। 
मेजिनी के अनुसार- परिवार मे बालक नागरिकता का प्रथम पाठ माता के चुंबन और पिता के देख -रेख और अनुशासन से ही सीखता है। संरक्षण में सीखता है। 
div>Disclaimer-- मैने ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने की कोशिश की है। जो अनेको माध्यम और खुद के अनुभव से संकलित है। उम्मीद नहीं विश्वास है की आपलोग को पसंद आयेगा। 



सोमवार, 26 सितंबर 2022

सफरनामा २

       सफरनामा २

घर देर से पहुँचना नहीं पहुँचने से बेहतर है। सफरनामा लिखो मंज़िल मिलने tk

जिदंगी आपकी जरूर है लेकिन आप अमानत अपने परिवार की हो। जिनको आपकी जरूरत है। इसलिए घर से चलकर घर को पहुँचो। 


रोज़ लाखों करोड़ों लोग दिन रात सफर में रहते हैं। हम जब सो रहे होते हैं तब भी सफर 24×7 चलता रहता है। क्युकी चलना ही जिंदगी है। जब हम अपने घर से किसी अन्य स्थान या गंतव्य तक या मंज़िल तक किसी भी माध्यम से( पैदल, ट्रेन, हवाई जहाज, बैलगाडी  ) एक निश्चित दूरी तय करते हैं यही प्रक्रिया सफर ,यात्रा कहलाता है। और हम मुसाफिर या यात्री। रास्ते पर चलना भी सफर ही है।सड़क दुर्घटना में जरूरत मंद का मदद करे

जिंदगी भी एक सफर है जो जन्म से शुरू होती है जिंदगी के अनेको भूमिका निभाना, सुख दुःख झेलना, कर्म करना रास्ते है जिंदगी के जो अनुभव दिलाता है और इस यात्रा का अंत मृत्यु को प्राप्त होना है। 

खैर हम एक दिन भागलपुर से पटना जा रहा था। वो भी सड़क से और कार मारुति से। चुकी मुझे गाडी चलाने से डर लगता हैं। और तेज गति से भी। हम सपरिवार थे। सुबह सुबह निकल गए। तेज धूप थी, गर्मी भी बहुत थी। गाडी भी छोटी थी। सभी लोग आपस में बातचीत करते हुए जा रहे थे। गाडी मे गाना धीमे आवाज़ मे बज् रहा था। गाडी नॉर्मल स्पीड में थी। सुलतानगंज पहुँचे वहाँ बीच बाजार में काफी जाम था। गाडी की लम्बी कतार थी। 

यातायात के महत्वपूर्ण 10 नियम

Very important 10 Traffic Rules in Hindi | Yatayat Ke Niyam

1:- एम्बुलेंस को पहले रास्ता दे

2 :- गलत तरीके से या निषेध जगह पर वाहन पार्किंग ना करे

3 :- वाहन चलाते समय दुसरे वाहन से रफ़्तार की कम्पटीशन न करे

4 :- अकारण हॉर्न न बजाये, आपको ही नही आपके आगे वालो को भी जल्दी जाने की जल्दी रहती है

5 :- Traffic Signal के अनुसार वाहन चलाये

6 :- गाड़िया चलाते समय हाथ के सिग्नल का भ उपयोग करे

7 :- निश्चित और नियंत्रित गति से ही वाहन चलाये

8 :- चौराहे, यु-टर्न, भीड़भाड़ वाले इलाको में गाड़ी धीमी गति से ही चलाये

9 :- सीट बेल्ट, हेलमेट का उपयोग जरुर करे, ये सभी चीजे हमारी सुरक्षित यात्रा के लिए ही बने होते है

10 :- अपने वाहन से कही की भी यात्रा करने से पहले अपने ड्राइविंग लाइसेंस और वाहन के जरुरी कागजात अपने साथ जरुर रखे

तो ऐसे आपकी थोड़ी से सावधानी के यात्रा करना आपके साथ कितने लोगो की जान को सुरक्षित बना सकते है तो हर किसी को यातायात के सभी नियमो को अच्छे तरीके से जरुर पालन करना चाहिए और Traffic Rules को पालन करने के लिए दुसरो को प्रेरित और इसके फायदे के बारे में जरुर समझाना चाहिए तभी आप अपने आप के साथ इस देश को भी दुर्घटना रहित सुरक्षित देश बना सकते है/

सुबह का समय था युवक /युवतियाँ स्कूल, कlलेज, ट्यूशन वगैरह पढ़ने जा रहे थे कुछ महिलाएं पूजा करने मंदिर तो कुछ गंगा स्नान् करने जा रही थी। कुछ लोग सब्जी मंडी में खरीददारी कर रहे थे। इनके तरह तरह के परिधान इनपे काफी आकर्षण ला रही थी। बहुत सुंदर नजारा था। हमलोग थोडी देर में आगे निकल गए। लगभग लाखिसराॅय पहुँचे। अब डेरैवर (driver) भी अब उबने लगा था। बीच बीच में गाडी तेज गति से चलाता। तभी अचानक कुछ दूरी पर देखा की एक गाडी motorcycle accident कर गया है। भीड़ जमा है। बहुत सारे लोग हैं । पति -पत्नी और एक मासूम बच्चा रोड पर अचेत गिरा हुआ था। सिर्फ बच्चे को होश था। 

शायद माँ की ममता और दुआ ने इस बच्चे को सुरछित रखा। माँ और बाप दोनों बेहोश थे। हमलोगो ने गाडी रोका। उतरकर first aid medical treatment दिये। क्युकी हमारे घर में रिश्ते में पlरlमेडिकल् स्टाफ उस समय गाडी मे मौजूद थी। फिर उनके घर को सूचित किया चुकी हमलोग को जल्दी पहुँचना था। इसलिए आगे बढ़ गया,safe drive save life,चेक, कॉल, केयर को अपनाएंघर से निकलें घर पहुँचने के लिए

एक्सपर्ट बताते हैं कि सड़क हादसे के बाद इस तीन प्रक्रिया को देखना चाहिए। पहला चेक आता है, जिसमें देखा जाता है कि मरीज ठीक है या नहीं, अच्छे से सांस ले रहा है या नहीं, सुरक्षित है या नहीं।queen raj blogger presented 

 लाइफ सपोर्ट में इस तरीके को आजमाएंआसपास देखेंकहीं आग तो नहीं लगने वाली, पेट्रोल लीकेज तो नहीं, शॉर्ट सर्किट की समस्या तो नहीं, यदि हो रही है तो तमाम घायलों को उस स्थान से दूसरी स्थान पर ले जाएंघायल व्यक्ति के पास जाकर बात करेंl एक हाथ कंधे पर रखकर सवाल करेंl आप ठीक हैं या नहीं, गर्दन न पकड़ें, क्योंकि हादसे में गर्दन के चोटिल होने की संभावना अधिक होती हैयदि मरीज जवाब नहीं दे रहा है तो एंबुलेंस व जान परिचित को फोन करेंअब मरीज की नाड़ी की जांच करें, इसके लिए गर्दन के नीचे दाएं तरफ दो अंगुली रखकर आठ से 10 सेकेंड तक देखें कि मरीज की सांस चल रही है या नहीं। जनहित के लिए कारगर। 

सबसे पहले  डॉक्टर बताते हैं कि सड़क हादसों के बाद ब्लीडिंग होने की सबसे ज्यादा केस देखने को मिलते हैं। यदि आपके आसपास भी कहीं कोई हादसा हुआ हो तो आप देखें कि मरीज का खून तो नहीं निकल रहा है। इसके लिए आपको उस जगह पर साफ कपड़े को लपेट देना चाहिए। ताकि ब्लीडिंग बंद हो। 

तभी हमने अचानक सोचा की सड़क पर जान कितनी सस्ती है और समय कितना महत्वपूर्ण है। की चंद लम्हों में किसी की जान चली जाती हैं तो कोई उसी चंद लम्हों के कारण बच जाता हैं। बेचारा के रिश्ते के लोग इंतज़ार कर रहे होंगे उनको क्या पता की ये इंतज़ार इंतज़ार ही रह जायेगा। लोग घर से रोड होते हुए छोटी सी मानव भूल के कारण चंद लम्हों में मृत्युलोक के रास्ते पर चल पड़े है। सबकुछ छोड़ कर। जब वो घर से निकले थे तो उनको क्या पता होगा। इसलिए सड़क पर सावधानी हटी दुर्घटना घटी। आप उतना ही तेज गाडी चलाओ की गाडी पर आपका कंट्रोल अचानक भी हो जाए। लेकिन अगर आपका कंट्रोल हटा तो सड़क आपको कंट्रोल करके हॉस्पिटल के रास्ते यमलोक भेज देगी।  इसलिए कहता हूँ देरी से पहुँचना ठीक है अच्छा है। नही पहुँचने से। किसी की इंतज़ार और आस हो आप। उसे अधूरा मत छोड़ो। खुद की नही परिवार की सोचो। Slow drive, safe drive, save your life
Disclaimer--self felling, self thought, 

लेकर करे 🙏🙏

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     Rituraj kumar
     E-mail-sahabriturajbabu@gmail.com

     Channel-- queenrajthoughthindi. blogspot. Com(queenraj blogger) 

आज कल के भाग दौड़ भरी जिंदगी में फुर्सत नहीं है। किसी के पास। भागम भाग लगी हुई है। रिश्ते नाते स्वार्थ और लोभ के कारण चल रही हैं। जिससे जितना स्वार्थ उससे उतना गहरा रिश्ता।हर कोई उपदेश दे देगा। लेकिन खुलकर समर्थन नही। साथ नही। फिर भी एक ऐसे साथी की जरूरत सबको होती हैं जो जरूरत और उपदेश नही समय और साथ दे। मेरा content (blog) पारिवारिक और सामाजिक जीवन पे आधारित हैं। या फिर हमारे जिंदगी के अनुभव को आपलोगो से साझा करने का प्रयास किया हूँ। 🙏🙏

बुधवार, 21 सितंबर 2022

भाई और बँटवारा

भाई और बँटवारा 

संपत्ति बाटें मन नही

घर नही माता पिता के रहने तक

माता पिता को नहीं बाँटे साथ रहने दें  

 

कुदरत ने भाई को भाई का साथ देने साथ रहने ,सुख दुःख का साथी, आपस मे प्यार से रहने के लिए भेजा। लेकिन लोभ ,लालच, स्वार्थ, इर्ष्या ने इस रिश्ते को भी दागदार कर दिया।  भाई बना था सुख दुख के साथी के लिए लेकिन ये सुख दुःख नही जमीन, रुपए, घर यहाँ तक की माता पिता को को भी अलग अलग रख के बटवारा कर लेते हैं। माँ मेरी और पिता तुम्हारी ओर।  भाई अब बटवारा करने लगे है।बचपन में एक-दूसरे का ख्याल रखने वाले भाई-भाई का रिश्ता…जो कभी चेहरा देखकर और आवाज़ की लय सुनकर एकदूसरे की परेशानी भांप जाने वाले होते थे…वही भाई-भाई का रिश्ता न जाने क्यों जब उनकी शादी हो जाती है…तो अपनी पत्नी के साथ रहते हुए एक दूसरे की चिंता को भांप कर भी अनदेखी कर देते हैं…। लेकिन सम्बन्ध को निभाना” एक साधना जिंदगी मे हम कितने सही और कितने गलत है…ये सिर्फ दो ही शक्स जानते है…ईश्वर “और अपनी “अंतरआत्मा” और हैरानी की बात है कि दोनों नजर नहीं आते एक बात और जब हम खुद को

घरपरिवार, भाई का बँटवारा, माँ बाबूजी की मजबूरी समझ लेते है तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि l इसमें अगर एक भाई थोड़ा सीधा कम बुद्धि का रहा तो चालांक और तेज तर्रार भाई इसको कम बुद्धि वाले को साथ नही देता बल्की सिर्फ हड़पनीति के तहत उसको गलत साबित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ता है। भाई माँ पिता को साथ रहने दो दोनों उनके पास जाके उनकी सेवा करो। उनपे बंदिश मत लगाओ। साधारण बात को भी उलझाके झूठ फरेब बोलके गलत तरीका से पेश मत करो। ,,,,रावन जबहि विभीषण त्यागा, भयहु विभव बिन तबहिं अभागा """ रावण को तभी अभाग्य नें घेर लिया जब उसने विभीषण को त्यागा ।राम जीते क्योंकि भाई साथ में था । रावण हारा ही इसीलिए क्योंकि भाई नें साथ छोड़ दिया ।लेकिन धर्म में सही मार्ग पर। 

कुछ दिनों पहले श्री अमिताभ बच्चन के द्वारा लिखी गई कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है अपनों का हाँथ पकड़कर चलो तो कभी गैरो के पैरों पर झुकना नहीं पड़ेगा। खैर कुछ कारण जो मतभेद पैदा करती है। (1) कभी कभी माता पिता का झुकाव एक तरफ़ा होता है जरूरत से ज्यादा। (2) हर काम मे नुक्स और शिकायत की भावना (3)भेदभाव, मान सम्मान( 4) जरूरत से ज्यादा उम्मीद (5) पारिवारिक सदस्यों के मूल्यांकन मे अनदेखी या पछपात् की भावना (6) लोभ, इर्ष्या, स्वार्थ - जब भाई है तो बराबर का हकदार है कर्म अपनी जगह। क्युकी अगर एक भाई कम दिमाग से है मेंटली अबनार्मल है तो कर्म क्या समझे। दूसरा तथ्य एक भाई को आमदनी ज्यादा है । ससुराल का साथ है तो वो रिश्तेदारी मे देन -लेन,अवो भगत ज्यादा करेगा। वही पे किसी भाई का परिवार बड़ा है आमदनी कम है कोई बाहरी मजबूती भी नही है तो ये भाई ज्यादा आमदनी वाले भाई से पीछे रहेगा। इस बात को समझना होगा। (7)  जो करता है गलती उसी से होती हैं सिर्फ मौखिक प्यार से कुछ नहीं होता। दिखावा से कुछ नहीं होता। लेकिन ये बात भी सही है समारोह में घोड़े की पूछ ,आदर ,होती है गधे की नही। इसको समझे। (8) रिश्तेदार पारिवारिक जीवन में सच का साथ दे। सही मूल्यांकन करे। उचित मार्गदर्शन दे। जैसे जिनसे फायदा है स्वार्थ पुरा हो रहा है या होने वाला है उसके रूठ जाने के डर से उल्टा -सीधा, सही -गलत सब मे हाँ मे हाँ मिलाकर अनुचित और अनैतिक कार्य में साथ नही दे। सामूहिक बहिष्कार करें/ रिश्ते और परिवार को अहमियत दे स्वार्थ और लोभ को नहीं। पारिवारिक गुटबंदी कभी नहीं करे सबको साथ लेकर चले (9) कुछ भी हो बात करते रहे मिलते जुलते रहे। कोई भी समस्या पारिवारिक प्लेटफॉर्म पे सार्वजनिक करे। रिश्तों की मर्यादा को समझे। (10) क्युकी ये समस्या आम है आप जब उचित समन्वय स्थापित नही करके लोभ, लालच, स्वार्थ के वाशिभूत होके गलत मानसिकता का साथ देते हो जब आपके साथ भी यही होगा तो कैसा महसूस करोगे। होता भी है। आपने सुना होगा अक्सर वही दिये से लोग जला करते हैं जिसको आंधी से ज्यादा बचाते है। (11) चूँकि बच्चों का पहला पाठशाला घर और पहला गुरु माता पिता होते हैं। जो वो देखेगा वही करेगा निश्चित है। पहला संस्कार घर परिवार में मिलता है। इसको ध्यान में रख कर कार्य ,व्यवहार, सोच विचार करो हमेशा उचित फैसला लोगे भी और उचित फैसला दोगे भी। (12) माता पिता की सेवा बड़े का मान सम्मान और छोटे को प्यार के साथ पारिवारिक अतिथि का भी उचित मान सम्मान करे। क्युकी अतिथि सिर्फ खाने घूमने नही आते आपको कुछ सिखाने और बताने भी आते हैं। (13) कुछ पारिवारिक लोग स्पष्टवादी बनते हैं जब बात दूसरे की रहती है तो खुलकर बोलते हैं। लेकिन जब अपने पे बात आती है तो तर्क दे देते हैं। बात छिपा लेते हैं। ये सोच इर्ष्या भाव को दर्शाती है। मन मुटाव का ये भी एक कारण है। 
निष्कर्ष--++ जब ज्यादा क्रोध आये तो तत्काल मौन हो जाओ क्युकी क्रोध सोचने विचारने के शक्ति खत्म कर देता है। लडाई -झगडा से सिर्फ नुकसान है।परिवार में अकड़, अभिमान, घमंड, guts, नही दिखाया जाता। शांति से निस्वार्थ भाव से बिना लोभ लालच के आपस में मिल बैठ के विचार विमर्श करे। आरोप प्रत्यारोप नही। किसी को बिना मतलब बदनाम नही करे क्युकी कोई बेवकूफ नही है आज कल सब अपना फायदा और स्वार्थ देखते हैं। 📝नोट-- सब जगह बात अलग अलग हो सकती है। पारिवारिक परिवेश भी। ऐसे दुनिया में अपवाद भी तो है ही। 🙏🙏

सोमवार, 19 सितंबर 2022

घर सँवारे (कोनमेरी मेथोड)

           घर सँवारे  (konmerimethod) 

त्योहार का महीना आने वाले है दुर्गापूजा, दिवाली घर की साफ सफाई इस बार konmerimethod से करे और अद्भुत सुख शांति अनुभव करे। और अपने सपनो के घर को बिल्कुल नया लुक दे। 

साफ सफाई तो सभी करते हैं  । लेकिन फिल्हाल konmerimethod method काफी चर्चित है। इसमें आप लोकेशन नही कैटेगरी के आधार पर साफ सफाई करे। कम मेहनत मे ज्यादा काम।गोड्रेज खचाखच् कपड़ो से भरा हुआ फिर भी पहनने को वस्त्र चुनाव में उधेड़बुन, इस समस्या का समाधान के लिए आए चलते हैं konmerimethod पे।   

आजकल शॉपिंग जरूरत कम फैशन ज्यादा हो गया है। शॉपिंग के बहाना चाहीये। जबकी फैशन और ट्रेंड रोज़ बदल रहा है। रिश्ते नाते, शादी, कहीं जाना है गोड्रेज खचाखच् कपड़ो से भरी हुई हैं। पहने कौन समझ नहीं पा रही हैं। चुकी महिलाएं फैशन और कपड़ो की शौकीन होती हैं। शॉपिंग की भी। 🙏कारण कपड़ो के भंडार। इस से निजात  के लिए konmerimethod अपनाईये। ये एक जापानी method मेरीकांडों नामक जापानी नागरिक द्वारा खोज की गई है। 2014 में एक किताब द लाइफ चेंजिंग मजिक ऑफ टाइडिंग अप के द्वारा चर्चित हुई। और आज कई देशों में इसको अपनाया जा रहा है। जो काफी हद तक सफल उपयोग साबित हुई है। ये method घरों के सभी समान को व्यवस्थित रखने के तरीके पे आधारित है। जैसे- कपड़ा, किताब, जूते, पेपरअप्स, ये method घरों में पड़े बेकार समानो से छुटकारा दिलाता है। इसमें जमाखोरी मना है। 

इसमें पूरे घर के समान को पाँच कैटेगरी मे बाँट ले,,1,,कपड़े नये पुराने सभी। ,,2,,किताबें सभी प्रकार के,,3,,कोमोनो फालतू बेकार समान,,4,,पेपर अप्स,,5,,सेंटीमेंटल item। 
इसमें पहले घरों के सारे कपड़े नये पुराने एक जगह लेकर रख लो। उसके बाद एक एक कपड़े, जूते वगेरह को बारी बारी से उठाए और खुद से पूछे क्या इससे आपको खुशी मिलती हैं। अगर हाँ तो रख लो। फिर दोबारा दूसरे कपड़ो में आपको लगता हैं की उब गया हूँ लेकिन काम आयेगा तो रुके और konmerimethod का उपयोग करे इसे हटा दो दूसरे को जरूरत मंद को क्युकी यकीन मानिये ये सिर्फ जगह लेगा। फिर उसके बाद तीसरा समान लगे की बेकार है फालतू है तो उसको उठा के धीरे से इतने दिन साथ देने के लिए thanx बोले और कचरे में डाले। 
शिंतो धर्म में हर वस्तु मे आत्मिक ऊर्जा होती है। वस्तु को जिस नज़र से देखोगे वही अनुभव होगा। उदास हुए तो उदासी आयेगे हँसे खुश हुए तो खुशी आयेंगे। कहते हैं कपड़ो को इज़्ज़त दो वो आपको इज़्ज़त देता भी है दिलवाता भी है। इसे आपका घर हल्का लगेगा। सुख शांति मिलेगी मैरी कांडों की यह विधि घर की खुबसुरती मे चार चाँद लगा देती हैं। तो इस बार सफाई konmerimethod के साथ 🙏🙏

शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

सकारात्मक और नकारात्मक

सकारात्मक और नकारात्मक सोच का प्रभाव समान्य जिंदगी में। 

डर वो भी हर बात पे ज्यादती है और ये आगे चलकर फोबिया नामक बीमारी का रूप ले लेती है। 

अत्यधिक प्रेम मे लोग अंधे हो जाते हैं सोचने समझने की शक्ति को खो देते हैं और सही वक़्त पर सही निर्णय नही ले पाते। 

किसी भी व्यक्ति का विचार कार्य उसके जीवन को काफी हद तक प्रभावित करता है। उनके भाव के मुताबिक विचार बन जाता हैं। संगति से गुण आत् है, संगति से गुण जात। 
सकारात्मकता उर्जावान जीवन के लिए ईंधन का काम करता है। अति सर्वत्र वर्जयते,, अति हमेशा से हमारे जीवन में प्रतिकूल प्रभाव डालती है।। ज्यादा चीनी या नमक दोनों खाना के स्वाद को बिगाड़ खराब कर देता हैं। 
जीवन में सकारात्मक कैसे रहे?

Positive कैसे रहे?
सादा जीवन और अच्छे विचार – आपको सकारात्मक रहने के लिए “सादा जीवन- उच्च विचार” के सिद्धांत पर चलना होगा । ...
नकारात्मक सोच वाले लोगों से दूर रहें – ...
अपने से छोटे आदमी को देखे और सीखे – ...
योगा करें, ध्यान लगाएं – ...
नेकी करें, गरीब लोगों की मदद करें, दान करें – ...
अच्छी नींद लें – ,,mithisoniraj presented,, ""
अधिक सकारात्मकता जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों को जन्म देती हैं। ज्यादा दयालु, खुशी, प्रेम, करुणा अपनी परिणाति मे हानिकारक है। अधिक विनम्रता बेवकूफी को दर्शाती हैं जबकी ये सही नही है। क्युकी शांत समुंदर बड़े से बड़े जहाज को डूबा देती हैं। जैसे titanic 🚢🚣😵😢 . अधिक खुशी में लोग वास्तविक जीवन के यथार्थ को नही समझ पाता है। 
इसी प्रकार नकारात्मकता की अधिकता जीवन को बर्बाद कर देती हैं। ये शlररिक और मानसिक संतुलन दोनों बिगाड़ देती हैं। लोग उचित समन्वय के साथ कोई कार्य या फैसला नही कर सकते हैं। इसमें शांत स्वभाव का लोग भी हिंसक हो जाता है। ऐसे लोग अपने शरीर और मांसिक्ता के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए संघर्ष जारी रख रहे होते हैं। लेकिन कही कही नकारात्मकता बरदान है जो भय, डर के रूप में लोगो को पुलिस और कानून के डर से गलत करने से रोकता है। गलत मानसिकता के खिलाफ रोकता है। लेकिन इसकी ज्यादती पेनिक होके फोबिया का रूप ले लेती हैं। लोग हर बात से डरने लगते हैं। इसमें पारिवारिक माहौल भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता हैं क्युकी अगर पारिवार के लोग इर्ष्याभाव के हुए धोखेबाज हुए और पहले विस्वासघात किया है तो कहते है दूध का जला मठा भी फुक के पीता है। तब धोखा और विस्वासघात झेले लोग हर बात पे डरेंगे। क्युकी कुछ पारिवारिक सदस्य की आदत हो जाती हैं सही और साधारण बात को भी गलत ढंग से तोड़ मरोडकर आगे अफवाह फैला देना। ये इर्ष्या और द्वेष रखकर किया जाता हैं। 
इर्ष्या या द्वेष गलतफेहमी के कारण ही होता है। द्वेष रखकर दूसरे की सुख चैन प्रगति पे बिना कारण बिना कोई ठोस आधार के जलन भाव से बिना सोचे समझे की गई प्रति क्रिया जलन या द्वेष रखकर किया जाता हैं। ये इर्ष्या और द्वेष भाव को दर्शाता है। इसके कारण द्वेष भाव से ग्रस्त लोग अगले को गुमराह करने की पुरजोर कोशिश करते है। उन्हे नुकसान पहुचाने की कोशिश करते है। झुठ फरेब फैलाकर उन्हे प्रताड़ित करते हैं। ये लोग बिना वजह जबरदस्ती उम्मीद लगाते हैं लेकिन जिसके लिए करते हैं उनसे नही। यही जलन द्वेष केहलाता है। लोग अपने दुःख में उतने दुखी नही होते जितना जान पहचान वाले की खुशी और सफलता से दुखी होते हैं। गुस्सा या क्रोध के आवेग आने पर तत्काल चुप हो जाए कोई प्रतिक्रिया नही दे। थोड़ा रुक के इंतज़ार करे।क्युकी क्रोध में लिया गया निर्णय हमेशा बर्बादी की ओर ले जायेगा। जब आप किसी को नुकसान देने की सोच रहे हो तो खुद को भी तैयार रखो क्युकी जो बिल्ली सड़क पर आदमी से जान बचाके भागती है वही बिल्ली बंद कमरे मे आपकी मौत का कारण भी बन सकती हैं। आप के तत्काल रुक जाने से क्रोध का वेग शांत हो जायेगा और फिर आपके वाणी और व्यवहार मे संयम का भाव दिखेगा। आप संतुलित हो जाओगे। 
इन सभी नकारात्मक सोच से ईमानंदlरी से आत्म चिंतन करते हुए अपना सही स्वरूप को समझते हुए स्वयं को उचित् दिशा में ले जाए। अपना मूल्यांकन करते हुए संयम, साधना, सेवा के साथ अपने कर्म का पालन करे। अपने आप को सत्कर्म और पूजा उपासना से जोड़े और अपने आप को नकारात्मक प्रभाव से बाहर लाये। ध्यान, योग, व्यायाम लाभकारी सिद्ध होगा। यदि हम दूसरे व्यक्तियों के प्रति अच्छे और दयालु विचार रखेंगे, तो वे सकारात्मक विचार हमारे पास अनुकूल रूप में ही लौटेंगे। लेकिन यदि हम बुरे विचारों को पालेंगे, तो वे विचार हमारे पास उसी रूप में लौटेंगे। हमारे शब्द, हमारे कार्य, हमारी भावनायें, हमारी गतिविधियाँ ही हमारे कर्म हैं। हमारे सोच विचारों से ही हमारे कर्म बनते हैं।

सोमवार, 12 सितंबर 2022

😊मासूमियत और बेबसी ☺

 मासूमियत और बेबसी🌹 मसुमियत एक फारसी शब्द है जो एक व्यक्ति या स्थान की सौंदर्य और सुंदरता की भावना को व्यक्त करता है। इस शब्द का अनुवाद "खूबसूरती", "मनमोहकता", "सुंदरता" या "मनोहरता" होता है। यह शब्द आमतौर पर किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु या समूह की सुंदरता, सौंदर्य और आकर्षण की अभिव्यक्ति के लिए उपयोग किया जाता है।

यह शब्द भावनात्मक रूप से विशेष रूप से महसूस की जाती है और वहाँ से अनुभव की जाती है। इसलिए, मसुमियत की परिभाषा सटीक नहीं होती है क्योंकि यह लोगों द्वारा भावनात्मक रूप से महसूस की जाने वाली एक अनुभूति होती है।      Quora पर आयें। दिलचस्प बातें                                        बेबसी एक हिंदी शब्द है जो एक व्यक्ति या स्थिति के लिए उसकी कमजोरी या असमर्थता को व्यक्त करता है। यह एक ऐसी स्थिति हो सकती है जब व्यक्ति को कोई समस्या या मुश्किल का सामना करना पड़ता है जो उसे हल नहीं करने में सक्षम बनती है। इस शब्द का उपयोग अक्सर किसी व्यक्ति की दुखद अवस्था या कमजोरी को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इसे अंग्रेजी में 'helplessness' भी कहते हैं।          

एक करतब दिखाकर अपना और अपने परिवार की भूख मिटाता मासूम बच्चा। गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर। 

आज दिन में कुछ जरूरी काम से घर से निकला चुकी मौसम काले घने बादलों से भरा था हवाएं चल रही थी आज गर्मी और उमस से राहत मिल रही थी। रिमझिम रिमझिम हल्की हल्की बारिश मौसम को और सुहाना बना रहा था। पैदल ही चल रहे थे । बाजार मे क।फी चहल पहल थी। शायद 01:00 बजने को था। स्कूल में छुट्टी का समय। सभी बच्चे अपने -अपने  अभिभावक के साथ घर आने की जल्दी बाजी मे थे। कोई कार से, कोई motorcycle, कोई इलेक्ट्रिक रिक्शा, तो कोई पैदल ही घर जा रहे थे। अलग अलग स्कूल के बच्चे सभी का ड्रेस कोड भी अलग अलग लग रहा था लेकिन बहुत सुंदर नजारा था। तभी एक स्कूल के सामने करतब दिखाने की तैयारी करता एक गरीब बेबस बच्चे और उनकी माँ दिखी। 

मैले पुराने कपड़े पहने एक लगभग 6(six) वर्ष की छोटी मासूम लड़की और उसकी माँ भी पुरानी साडी पहने दोनों स्कूल में छुट्टी होने का इंतज़ार कर रही थी। दोनों तरफ तीन डंडा का पाया और बीच में एक रस्सी बंधी थी इसी पे उस छोटी बच्ची को चलना था यही करतब दिखाना था।⛄🧚‍♂️छुट्टी के घंटी की आवाज़  स्कूल से बाहर आई तो इन् दोनों को बहुत खुशी हुई। ,,,जबकी मेरे मुताबिक छुट्टी के समय स्कूल के बच्चे घर जाने की खुशी में हँसते मुस्कुराते चेहरों के साथ बाहर निकलते है। अपनी पसंद का समान लेते हैं और घर जाते है खेलते कुदते कार्टून देखते हैं। खाते पीते हुए घर जाते हैं। किसी को शाम मे चिड़ियाघर जाने की खुशी तो किसी को पार्क जाने की तो किसी को बाजार जाने की।,,,,,, 

लेकिन वो गरीब बच्ची और बेबस माँ इनको देख के खुश हो रही थी। शायद इस लिए की यही बच्चे और इनके साथ आये अभिभावक को करतब दिखाकर कुछ पैसे मिल जाएंगे। रहने का तो ठिकाना नहीं लेकिन खाने को दो वक़्त की रोटी और तन ढकने के लिए कपड़े का इंतज़ाम होगा। हुआ भी। दोस्त तो कमीना होता है 😃

छुट्टी हुई करतब शुरू छोटी बच्ची हाथ मे डंडा लिए रस्सी पे चलने लगी, माँ चिल्ला चिल्लाकर लोगो से करतब के बारे में बोल रही थी। और रुपिया दस रुपिया मांग भी रही थी। आँचल फैला के सभी दर्शक रूपी बच्चे और उनके अभिभावक के पास जा रही थी। लोग पैसा देने भी लगे। हमने भी 50 (पचास) रुपिया दे दिया। लगभग 10 मिनट वो बेबस बच्ची रस्सी पे बिना सहारे के चली। फिर खेल खत्म सभी बच्चे घर जाने लगे ये दोनों पैसा गिनने लगे और शायद ये सोच रहे हो की आज अच्छा कमाई हो गई। खाना अच्छा मिलेगा। लेकिन क्या इस बच्ची को स्कूली बच्चे को देख के कोई फीलिंग नही होता होगा। क्या ये सपने नही देखते होंगे। लेकिन लाचारी बेबसी और गरीबी ने इस मुकाम पर लाके खड़ा कर दिया है। किस्मत का खेल निराले। कहीं धूप कहीं छाँव। किसी के द्वारा बेमतलब खर्च की गई राशि के समतुल्य कोई दिन भर में नही अर्जित कर पाता है। कोई स्वाद के लिए खाता है तो कोई पेट भरने के लिए। कोई फैशन और style के लिए कपड़े पहनता है तो कोई किसी तरह अपने बदन को ढकने के लिए। खैर जिंदगी संघर्ष है कुदरत का खेल वही जाने।reading urgent


मासूमियत और बेबसी

मासूमियत कब बेबसी बन जाती है
मIसूमियत बेबसी बन जाती है जब कोई व्यक्ति या जीवन रूपी समुदाय उसे अनुचित या न्यायासंगत रूप से उपयोग करता है। यह बचपन की नाईं संवेदनशीलता और अपरिचितता से उत्पन्न होती है, जिसे अधिकतर मासूम बच्चों में देखा जा सकता है।

जब एक व्यक्ति किसी बुरे कर्म के शिकार होता है या वह किसी बुरे समूह के अभिभावकों के दबाव में होता है, तो उसे बेबसी महसूस होती है। यह अपने आप में एक दुखद अनुभव होता है जो एक व्यक्ति की निर्ममता और निराशा का परिणाम होता है। यह आदमी को उसकी स्वतंत्रता और अधिकारों से वंचित कर देता है, जिससे वह अपने आप में असुरक्षित और निर्बल महसूस करता है।

इसलिए, मासूमियत बेबसी में बदल जाती है जब किसी व्यक्ति या समुदाय द्वारा अनुचित और अन्यायपूर्ण तरीके से व्यवहार किया जाता है। 

Disclaimer-- only for reading, watching & like forward. It's collected by many digital platforms & some self fellings. 

रविवार, 11 सितंबर 2022

🐇जीवन आनंद 🦢


                                🌳🌹जीवन आनंद🌹🌳

       जीवन आनंद

जीवन आनंद एक व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और खुशी का एक अनुभव है। यह एक ऐसी स्थिति है जब व्यक्ति जीवन के अलग-अलग पहलुओं का आनंद लेता है, जैसे कि उसके साथी, परिवार, समुदाय, खान-पान, मनोरंजन, ध्यान, अध्ययन आदि। जीवन आनंद का मूल मंत्र होता है कि व्यक्ति जीवन को अपनी प्रियतम चीजों से भर दे जो उसे संतुष्टि और खुशी देते हैं।जीवन आनंद और जिम्मेदारी दोनों जीवन में बहुत महत्वपूर्ण हैं। जीवन आनंद हमारे मन और शरीर के लिए आवश्यक होता है जबकि जिम्मेदारी हमारी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी को दर्शाती है। दोनों का संतुलन रखना जीवन में सफलता के लिए आवश्यक होता है।

जीवन आनंद का अनुभव व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह उसे एक सकारात्मक दृष्टिकोण देता है, जो उसके जीवन को और भी उत्तेजित करता है। इसके अलावा, जीवन आनंद का अनुभव व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्वस्थता के लिए भी बहुत लाभदायक होता है।

जीवन आनंद का अनुभव हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है। इसे प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को अपने जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में खुशी और संतुष्टि की तलाश करनी चाहिए।

जीवन है तो संघर्ष जारी रहेगा। क्युकी मानवयोनी मे धरती पर तो स्वयं ईश्वर को भी संघर्ष करना पड़ा था। उदाहरण श्री राम। श्री कृष्ण है। इस लिए जब जिंदगी में दुःख तखलीफ आये तो शांति से विचार करे। धीरज रखें इंतज़ार करे। क्यों की दुःख के बिना सुख की अनुभूति हो ही नही सकती जिसने दुःख झेला है वही सुख को समझेगा। 
आप पुराना जूता पहनकर  भी कंकड़ भरे उबड़ खबड़ रास्ते पर आराम से चल सकते हो लेकिन नये जूते मे कंकड़ रख के साफ सुथरे रास्ते में कुछ कदम भी नही चल पाओगे। अपनी कमजोरी पर अफसोस करने, लोगो पे गुस्सा करना, किसी की बात पे दुखी होना छोड़ दो। इसपे प्रतिक्रिया बिल्कुल नहीं दो। क्युकी ये तुम्हारी भावना है जिसपे तुम्हारा नियंत्रण होना चाहिए। कुछ उदाहरण सुनील छेत्री भारत के फुटबॉल कप्तान जो कभी दर्शकों के दुर्व्यवहार का शिकार हुई लेकिन मानसिक संतुलन बनाये रखा( बदला लेने इर्ष्या भाव संबंधी कोई प्रतिक्रिया नही दी मतलब जूते मे कंकड़ नही रखा) और अपने मेहनत को ऊर्जा को सही दिशा में लगाया और अपनी मेहनत से दर्शकों का दिल जीता और देश में 🏈फुटबॉल की लोकप्रियता बढ़ाई। भारत की ओर से सबसे ज्यादा मैच और गोल् इनके नाम है। जीवन आनंद की आकांक्षा।जीवन आनंद को  प्रभावित करने वाली आकांक्षाएं व्यक्ति के व्यक्तिगत रूचियों, इच्छाओं और आवश्यकताओं पर आधारित होती हैं। ये आकांक्षाएं व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि, संतुष्टि और सकारात्मक भावनाओं को उत्पन्न कर सकती हैं। नीचे कुछ ऐसी आकांक्षाएं हैं जो जीवन आनंद को प्रभावित कर सकती हैं:अधिक समय अपने पसंदीदा गतिविधियों में बिताना। ये गतिविधियां कुछ भी हो सकती हैं, जैसे कि खेल, कला, संगीत आदि।अधिक समय परिवार और मित्रों के साथ बिताना। अच्छी दोस्ती, परिवार और रिश्तों को बढ़ावा देना और संबंधों को मजबूत करना जीवन में अनंत आनंद और समृद्धि लाता है।स्वस्थ रहना। अच्छी सेहत एक शांत, खुशहाल जीवन के लिए आवश्यक है। स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम, सही खानपान और नियमित जाँच-परख जरूरी होती है।सीखने का शौक रखना। सीखने का शौक रखना

जीवन में सही और पर्याप्त लगन से विकास और सफलता प्राप्त कि जा सकती हैं। वर्तमान समय कैसा भी हो सही दिशा निर्धारित और विकासशील मानसिकता से सफलता के अनंत सामर्थ्य है। हमारी बुद्धि का ज्ञान हमारी मान्यताओं पर निर्भर करती हैं। सफल वे होते है जो अपनी कुशलताओ को निर्धारित नही मानके उसके समाधान पे पूरी ताकत लगा देते हैं। सफल बनने के लिए अपने उपर फेकें गए पथरों कंकड़ से अपना घर बना लो। ऐसी मानसिकता से ही सफलता प्राप्त होता है। यदि आपको पीछे नही जाना है तो कभी पीछे मुड़ कर नही देखें। अपने आप को जाने। 🌹🌳🙏🙏परिवार के साथ वक्त बिताना जीवन का सबसे बड़ा आनंद है।https://youtube.com/shorts/bTTBJIdRgWY

शनिवार, 10 सितंबर 2022

🌦पितृ ऋण की एहमियत 🪐⛈️

                           पितृ ऋण                             
पूर्वज़
हमारे हिंदू धर्म में श्राध कर्म का एक विशेष महत्व है। उनकी आत्म शांति के लिए क्रिया कर्म दान पुण्य की जाती हैं।
चुकी आत्मा अमर है ये सिर्फ शरीर त्यागती है। ऋषि जरत्कlरु को कुछ दिनों से अपने पूर्वज़( पितृ) के डरावने सपने आ रहे थे। ऋषि ने सवाल किया कौन हो आप? जो मेरे सपने में आके मुझे डरा रहे हो। जवाब मिला, मै  पूर्वज़ पितृ हूँ। तुम मुझे और अपने को बचाओ। जरत्कlरु ऋषि ने पूछा कैसे। पूर्वज़ बोले विवाह करके अपना वंश बढा कर। यदि आप ऐसा नहीं करते हो तो हम हमेशा पितृ लोक में फंसे रहेंगे। पूर्वज़ों की भूमि में उल्टे फंसे रहेंगे। और आप हमेशा के लिए पूत नामक नरक में फंसे रहोगे। वही ऋषि अगस्त्य को भी यही स्वप्न दिखा। जिसके बाद दोनों ऋषि ने विवाह कर बच्चे को जन्म दिया। ये पुराणो मे भी दोहराई गई है। नर संतान पुत्र मादा पुत्री कहा गया क्युकी उनके जन्म से ही उनके माता पिता पूत नामक नरक से मुक्त हुए। पूत वो जगह है जहाँ बच्चों को जन्म देने से इंकार करने वाले पुरुष और महिलाएं जाते हैं। पारंपरिक हिंदू मान्यता के अनुसार जीवित व्यक्ति अपने पूर्वज़ों अर्थात पितरों के प्रति (भास्कर रसरंग ११sep२२ देवदत्त पटनायक) प्रजनन के लिए बाध्यकारी है। यही पितृऋण कहलाता है। यह ऋण बच्चों को जन्म देकर( विवाह के बाद) मृतकों को भू लोक में पुनर्जन्म लेने के लिए सक्षम बनाकर चुकाया जाता हैं।। हिंदुओ द्वारा किये गए श्राद्ध के अनुष्ठान में पीसे हुई चावल के गोले दांत रहित पितरों को इस आश्वासन के साथ चढाये जाते हैं कि पितृ ऋण चुकाया जा सके। 
कुछ रोचक जानकारी--- हिंदू धर्म मान्यता के अनुसार आत्मा तीन नश्वर शरीर के भीतर विधमान है। पहला शरीर मांस और हड्डी से। दूसरा तंत्रिकाओ की ऊर्जा से जो मांस को जीव देती हैं। तीसरा शरीर आत्मा का स्वरूप है और ये अदृश्य हैं और इसमें कर्म के पुण्य,व ऋण जमा है। जबतक आत्मा पिछले जन्मो मे अपने कर्म से संचित ऋण और पुण्य से मुक्त नही होता तब तक आत्मा जीवितों की भूमि में लौटने और पिछले कर्मो के कारण निर्मित परिस्थिति का अनुभव करने के लिए बाध्य है। 🙏🙏🌷🌹

सफरनामा

सफर में अंजान से बातें

सफर में अंजान से बातें और स्ट्रेस यात्रा करते समय, अनजान लोगों से बातें करना आम बात है, लेकिन इससे थोड़ा स्ट्रेस भी हो सकता है। जब हम किसी अनजान व्यक्ति से बात करते हैं, तो हमें अनुभव हो सकता है कि हम उन्हें समझ नहीं पा रहे हैं या वे हमें समझ नहीं पा रहे हैं। इस तरह के स्थितियों में थोड़ा स्ट्रेस उत्पन्न होना स्वाभाविक है।

इस समस्या का समाधान करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम सक्रिय रूप से अनजान लोगों से बात करें। हमें उनसे बात करते समय संवेदनशीलता और सहजता के साथ संभाषण करना चाहिए। हमें दूसरों की भावनाओं और विचारों का सम्मान करना चाहिए।

एक अन्य समाधान है कि हम अपनी अनुभूतियों को शांत रखें और सक्रिय रूप से समाधान ढूंढें। हम अपने आप को बातचीत में सक्रिय रखने के लिए अपनी अवधि, संभाषण के तरीके और वाक्य प्रचलित शैली से परिचित होना चाहिए।

अंततः, हमें यात्रा करते समय संयम बनाए रखने की आवश्यकता होती है
अंजान से बातचीत स्ट्रेस को खत्म करने मे सहायक होता है। उसके द्वारा किया गया तारीफ ज्यादा असरदार होती हैं। लंबे समय तक खुश रहने का कारण भी। ये बातचीत एक खुशनुमा माहौल को बनाती हैं जिसमे एक दूसरे के विचार का आदान प्रदान होता है। indian pets
हम एक बार साहेबगंज से पटना जा रहे थे। सीट मिला बैठे गए। शाम का समय था सूर्य ढलते हुए और आकाश में काले उजले घने बादल और ठंडी ठंडी हवाएं बिल्कुल नशीली शाम प्रतीत हो रहा था। तभी कहलगाँव station आ गया। एक परिवार हमारी बोगी मे मेरे कंपार्टमेंट् के अगली सीट पर आया। उनको चढ़ाने कुछ लोग आये हुए थे। सारा समान adjust कर के सभी बैठ गए। रेलगाड़ी sabour पार कर गई। भागलपुर आया लोग चढ़े गाडी खुली। अब ये लोग आराम कर रहे थे। तभी मैंने देखा की परिवार में पति -पत्नी और थोड़े बड़े दो बेटे थे। और सभी के पास अपना मोबाइल। और एक एक करके सभी अपने अपने मोबाइल में busy हो गए। मतलब आस पास के लोग तो दूर उन चारों ने अपने मे आपस में बात नही की। उनकी क्या बोलू लगभग लोगो की इंटरटेनमेंट मे मोबाइल या मल्टीमीडिया है। 
संकोच या झिझक की वजह से सफर में लोग एक दूसरे से बातचीत नही करते हैं। लोगों ने शायद अजनबी से बातचीत करने से परहेज कर लिया है। इसका कारण लोग अपरिचित के प्रतिक्रिया से डरते हो या उनका अनुमान गलत हो। फिर station पे बोला भी तो जाता हैं अजनबी से सावधान। कुछ हद तक परहेज सही है। लेकिन आप अच्छे घर परिवार के पढ़े लिखे लोग हैं जो कुछ मिनट की बातचीत में अगले का विचार व्यवहार को समझ जायेंगे। क्युकी आपके first impression is last impression का आधार कुछ मिनट की बातचीत के बाद तय होगा। digital marketing strategy
जबकी सफर में अंजान लोगो से बातचीत और अपने विचार अनुभव का आदान प्रदान करने से सफर आसानी से गुज़र जाती हैं। कुछ नया सीखने को देखने को मिलता है। और जब आप चार लोग से बातचीत कर रहे होते हो तो चोर, उच्चके, आपसे दूर ही रहेंगे। आज के लिए इतना ही। अब मै पटना  station में उतरने को तैयार। गाडी धीरे धीरे प्लेटफॉर्म पे लगती हुई। लेकिन वो परिवार नही दिख रहा शायद पीछे कहीं उतर गए होंगे। कुछ भी हो ऑन्टी जी इतनी उम्र में भी गज़ब की खूबसूरत लग रही थी। Good night दोस्तो। 🙏🙏https://youtube.com/shorts/bTTBJIdRgWYcovid19 के समय का uniquevideo देखें

अजनबी से बातचीत सफर में।

सफर में अजनबी से बातचीत और बड़ाई पे मंतव्य
अजनबी से बातचीत करना और उन्हें बधाई देना सफर के दौरान एक महत्वपूर्ण सामाजिक अनुभव हो सकता है। यह न केवल आपको अलग-अलग लोगों से अधिक संवेदनशील बनाता है, बल्कि यह आपको अपनी सामाजिक कौशलों को भी विकसित करने में मदद कर सकता है।valentine day special

यदि आप अपने सफर में किसी अजनबी से बातचीत करना चाहते हैं, तो अब से बाहर निकल जाएँ और अपनी वाणी और हँसी लेकर आगे बढ़ें। यदि वे भी आपसे बात करना चाहते हैं तो बातचीत शुरू करने में कोई समस्या नहीं होगी। आप उनसे उनके देश या शहर के बारे में पूछ सकते हैं, उनकी कला, संस्कृति और रुचियों के बारे में जान सकते हैं, या फिर वे आपसे अपने बारे में बता सकते हैं।relationship

अजनबी से बातचीत के फायदे

अजनबी से बातचीत करने के फायदे:
  1. नए विचारों का अनुभव: अजनबी से बातचीत करने से नए विचारों और जीवन दृष्टियों का अनुभव होता है। यह आपको बढ़ते हुए दुनिया के साथ जोड़ता है।

  2. संभावनाएं बढ़ाना: अजनबी से बातचीत करने से आपके लिए नई संभावनाएं खुलती हैं। यह आपकी करियर या व्यवसाय में समावेशीता का मार्ग खोलता है।

  3. समझदारी बढ़ाना: अजनबी से बातचीत करने से आपकी समझदारी और सामाजिक ज्ञान में वृद्धि होती है। यह आपको संस्कृति, भाषा और दृष्टिकोणों की समझ में मदद करता है।

  4. भावनाओं को समझना: अजनबी से बातचीत करने से आपको भावनाओं की समझ में मदद मिलती है। यह आपको विभिन्न लोगों के अनुभवों से रूबरू कराता है और आपके विचारों को विस्तारित करता है।

  5. विश्वास का मार्ग खोलना: अजनबी से बातचीत करने से आप लोगों में विश्वास और संबंधों को बनाने के मार्ग खोल सकते हैं।            

  6. सावधान अजनबी से बातचीत

    अजनबी से बातचीत के दौरान सावधानी
    जब आप अजनबी से बातचीत करते हैं, तो आपको अपनी सावधानी बरतनी चाहिए। यहां कुछ टिप्स हैं जिन्हें आप ध्यान में रख सकते हैं:
    1. अपनी निजी जानकारी साझा न करें: अजनबी के साथ बातचीत करते समय, आपको अपनी निजी जानकारी साझा नहीं करनी चाहिए। उनसे आपके संबंध में ज्यादा जानकारी शेयर न करें, जैसे कि आपका घर कहां है या आप किसी अन्य व्यक्ति के साथ कितने लोग रहते हैं।

    2. संभवतः वास्तविक नहीं हो सकता है: अजनबी से बात करते समय, आपको समझना होगा कि वे संभवतः वास्तविक नहीं हो सकते हैं। आप उनकी पहचान नहीं जानते हैं और उनकी बातों की सत्यता की गारंटी नहीं हो सकती। इसलिए, आपको जो भी बात करनी हो, उससे पहले सत्यता की जांच करनी चाहिए।

    3. अपने संदेश को स्पष्ट करें: अजनबी से बातचीत करते समय, आपको अपने संदेश को स्पष्ट करने की जरूरत होती है। आप जो कुछ बोलते हैं, उसे स्पष्ट तरीके से बोलें

    4. Disclaimer-- only read, like&share.

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